केदारनाथ एक पवित्र तीर्थ स्थल है जहां भगवान शंकर का ग्यारहवां ज्योतिर्लिंग स्थापित है। शंकराचार्य जी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था.जिनकी समाधि मंदिर के पीछे ही है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं को असुरों से बचाने के लिए शिव जी कोडारम बैल के रूप में प्रकट हुए, उसी कोडारम बैल से इस मंदिर का नाम केदारनाथ रखा गया है।
केदारनाथ धाम हर तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है। एक तरफ करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड है ।
मान्यता है कि बाबा केदारनाथ जगत कल्याण के लिए छह महीने समाधि में रहते हैं। कपाट खुलने के साथ ही बाबा केदार समाधि से जागते हैं।इसके बाद वह भक्तों को दर्शन देते हैं।
बाबा केदारनाथ का मंदिर भारतीयों के लिए केवल श्रद्धा और आस्था का ही केंद्र नहीं है, बल्कि उत्तर और दक्षिण भारत की धार्मिक संस्कृति का मीटिंग प्वाइंट भी है।
उत्तर भारत में पूजा पद्धति अलग है, लेकिन बाबा केदारनाथ में पूजा दक्षिण की वीर शैव लिंगायत विधि से होती है। मंदिर के गद्दी पर रावल होते हैं,उनका स्थान गुरु का होता है।
माना जाता है कि केदारनाथ मंदिर की रक्षा भैरों नाथ जी द्वारा की जाती है, जिन्हें भगवान शिव के उग्र अवतार के रूप में जाना जाता है। भैरों नाथ का मंदिर केदारनाथ के मुख्य मंदिर से काफी करीब स्थित है।
भैरों नाथ जी को मंदिर का संरक्षक माना जाता है। केदारनाथ के दर्शन करने वाले लोगों को भैरों बाबा मंदिर के भी दर्शन करने जरूर जाना चाहिए।
दीपावली महापर्व के दूसरे दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ ले जाते हैं
6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं। 6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य है की 6 माह तक दीपक निरंतर जलता रहता है।
केदारनाथ यात्रा को लेकर भक्तों में भारी उत्साह रहता है। यात्री देश-विदेश से बड़ी संख्या में बाबा के दर्शनों को पहुंचते हैं। पहाड़ो के बीच इस मंदिर की सुन्दरता देखने लायक है