हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से रथ यात्रा आरंभ हो जाता है। रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के प्रति भक्ति और आस्था का प्रतीक है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ में विराजते हैं। ऐसी मान्यता है कि रथ यात्रा का साक्षात दर्शन करने भर से भक्तों को 1000 गुना यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है।
रथ यात्रा में, भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और उनकी बहन सुभद्रा की लकड़ी की मूर्तियों को तीन विशाल रथों पर रखा जाता है और शहर की सड़कों पर घुमाया जाता है। लाखों भक्त इन रथों को खींचते हैं और भगवानों के जयकारे लगाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह त्योहार 3000 साल से भी अधिक पुराना है।
भगवान् जगन्नाथ रथ यात्रा के रोचक रहस्य
रथ यात्रा के दौरान ग्रहों की स्थिति विशेष मानी जाती है। रथ यात्रा के दौरान नवग्रहों की पूजा की जाती है। रथ यात्रा में शामिल होने से अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम होता है और शुभ ग्रहों का प्रभाव बढ़ता है। रथ यात्रा ग्रहों की चाल से जुड़ी होती है। माना जाता है कि रथ यात्रा के दौरान ग्रहों की चाल अनुकूल होती है, जिसका सकारात्मक प्रभाव लोगों के जीवन पर पड़ता है।
रथ यात्रा के दौरान नक्षत्रों का भी प्रभाव महत्वपूर्ण होता है। रथ यात्रा का मुहूर्त ज्योतिष शास्त्र के अनुसार निकाला जाता है। रथ यात्रा के दौरान कई शुभ योग बनते हैं, जो लोगों के लिए शुभ फलदायी होते हैं। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होता है, उसे 1000 यज्ञों के बराबर पुण्य फल मिलता है। साथ ही व्यक्ति की परेशानियां भी दूर हो जाती है। इसलिए रथ यात्रा के दर्शन अवश्य करें।
जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत
पौराणिक कथा के अनुसार जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत स्वयं भगवान कृष्ण ने की थी। ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण एक दिन अपनी बहन सुभद्रा और बलराम जी को लेकर रथ यात्रा के लिए निकले थे। तभी से भक्त इस परंपरा को निभाते नजर आ रहे हैं। यही वजह है कि इस यात्रा को हर साल निकाला जाता है। साथ ही, इसमें लाखों भक्तों की भीड़ भी नजर आती है।
जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व क्या है? (Importance of Jagannath Rath Yatra)
धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, रथ यात्रा का महत्व यज्ञ के समान माना जाता है। मान्यता है कि इस समय भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा पृथ्वी पर भक्तों के दर्शन देने आते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। रथ यात्रा में शामिल होने और भगवान के दर्शन करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
स्कंद पुराण के अनुसार रथ यात्रा में जो व्यक्ति जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करते हुए गुंडीचा नगर तक जाता है। उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। वहीं जो व्यक्ति रथ यात्रा में भगवान के नाम का जाप करते हुए रथयात्रा में शामिल होता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।
भाई बलभद्र के रथ का महत्व
भगवान बलभद्र शक्ति और पराक्रम के देवता माने जाते हैं। उनका रथ शक्ति और पराक्रम का प्रतीक है। भगवान बलभद्र को कृषि का देवता भी माना जाता है। उनका रथ कृषि और किसानों का प्रतीक है। भगवान बलभद्र धैर्य और विनम्रता के लिए जाने जाते हैं। उनका रथ इन गुणों का प्रतीक है। भगवान बलभद्र भाईचारे के प्रतीक हैं। उनका रथ भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक है।
बहन सुभद्रा के रथ का महत्व
देवी सुभद्रा शक्ति और शांति की देवी हैं। उनका रथ शक्ति और शांति के संतुलन का प्रतीक है। देवी सुभद्रा मातृत्व और स्नेह का प्रतीक हैं। उनका रथ मां और बच्चों के बीच प्रेम और स्नेह का प्रतीक है। देवी सुभद्रा रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ और बलराम के साथ यात्रा करती हैं, जो भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक है।
भगवान जगन्नाथ के रथ का महत्व
भगवान जगन्नाथ का रथ भगवान विष्णु का प्रतीक है। रथ यात्रा भगवान विष्णु की भक्ति और पूजा का प्रतीक है। रथ यात्रा मोक्ष का प्रतीक भी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त रथ यात्रा में भाग लेते हैं या रथ को खींचते हैं, उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।
रथ यात्रा का क्रम (sequence of Rath Yatra)
बलराम जी का रथ (तालध्वज) – यह रथ सबसे पहले निकलता है। इसका रंग लाल और हरा होता है।
देवी सुभद्रा का रथ (दर्पदलन या पद्म रथ) – यह रथ बीच में निकलता है। इसका रंग काला या नीला और लाल होता है।
भगवान जगन्नाथ का रथ (नंदीघोष या गरुड़ध्वज) – यह रथ सबसे पीछे निकलता है। इसका रंग लाल और पीला होता है।
Jagannath Rath Yatra 2024: कितने दिन तक निकलती है जगन्नाथ रथ यात्रा?
इस साल जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा 07 जुलाई से आरंभ हो चुकी है। यह यात्रा कुल 10 दिनों तक चलती है। इसके 11वें दिन जगन्नाथ जी की वापसी के साथ इस यात्रा का समापन हो जाता है। इस यात्रा में शामिल होने के लिए श्रद्धालु देश-विदेश के कोने-कोने से आते है। बता दें,
आखिर प्रसिद्ध जगन्नाथजी की मूर्ति क्यों रह गयी अधूरी?
कहा जाता है कि भगवान जगत के स्वामी जगन्नाथ भगवान श्री विष्णु की इंद्रनील या कहें नीलमणि से बनी मूर्ति एक अगरु वृक्ष के नीचे मिली थी। मूर्ति की भव्यता को देखकर धर्म ने इसे पृथ्वी के नीचे छुपा दिया। मान्यता है कि मालवा नरेश इंद्रद्युम्न जो कि भगवान विष्णु के कड़े भक्त थे उन्हें स्वयं श्री हरि ने सपने में दर्शन दिये और कहा कि पुरी के समुद्र तट पर तुम्हें एक दारु (लकड़ी) का लठ्ठा मिलेगा उस से मूर्ति का निर्माण कराओ।
राजा जब तट पर पंहुचे तो उन्हें लकड़ी का लट्ठा मिल गया। अब उनके सामने यह प्रश्न था कि मूर्ति किनसे बनवाये। कहा जाता है कि भगवान विष्णु स्वयं श्री विश्वकर्मा के साथ एक वृद्ध मूर्तिकार के रुप में प्रकट हुए। उन्होंनें कहा कि वे एक महीने के अंदर मूर्तियों का निर्माण कर देंगें लेकिन उस कारीगर रूप में आये बूढे ब्राह्मण ने राजा के सामने एक शर्त रखी कि वह यह कार्य बंद कमरे में एक रात में ही करेगा और यदि कमरा खुला तो वह काम बीच में ही छोड़कर चला जाएगा।
राजा ने उस ब्राह्मण की शर्त मान ली और कमरा बाहर से बंद करवा दिया। लेकिन काम की समीक्षा करने के लिए राजा कमरे के आसपास घुमने जरुर आता था।
महीने का आखिरी दिन था, कमरे से भी कई दिन से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, तो राजा को जिज्ञासा हुई और उनसे रहा न गया और अंदर झांककर देखने लगे और दरवाजा खुलते
ही वह ब्राह्मण उस अधूरी मूर्तियों को छोड़ कर गायब हो गया।
वास्तव में वह बूढा ब्राह्मण विश्वकर्माजी थे, जो
भगवान विष्णु के आग्रह पर यह जगन्नाथ मंदिर में कृष्णा, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियाँ बनाने धरती पर आये थे। राजा को अपने कृत्य पर बहुत पश्चाताप हुआ और वृद्ध से माफी भी
मांगी लेकिन उन्होंने कहा कि यही दैव की मर्जी है। तब उसी अवस्था में मूर्तियां स्थापित की गई। आज भी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियां उसी अवस्था में हैं।
जगन्नाथ यात्रा के रथ होते हैं खास
भगवान जगन्नाथ हर साल आषाढ़ माह में अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नीम और हांसी के पेड़ों की लकड़ी से बने रथ पर सवार होकर यात्रा करते हैं। इन पेड़ों का चयन मंदिर की खास समिति के जरिए किया जाता है, जिसका गठन जगन्नाथ मंदिर के पंड़ितों द्वारा किया जाता है। यह जगह-जगह जाकर नीम के अच्छी लकड़ियों को जांचते हैं। इसके बाद इससे रथ का निर्माण करते हैं। आपको बता दें कि इन रथ को बनाने के लिए कभी भी कील या कांटे का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
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