भगवान शिव ब्रह्मांड के सृजनहारी रूप हैं। शिव ने ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में तीनों सूक्ष्म देवताओं की रचना की है, जो सृष्टि, संरक्षण और संहार के लिए जिम्मेदार हैं। भगवान शिव को इस कारण महादेव कहा जाता है। उनकी आराधना का विशेष महीना श्रावण है।
यजुर्वेद में शिव की महिमा शांतिदायक के रूप में वर्णित की गई है। शिव के नाम का अर्थ है ‘कल्याणकारी’। शिव के भक्तों को मृत्यु, रोग और दुःख का डर नहीं होता।
भगवान शिव का स्वरूप
भगवान शिव का रूप-स्वरूप अत्यंत विचित्र और आकर्षक है। वे सदा शांत और ध्यानमग्न रहते हैं। इनके जन्म का अता-पता नहीं हैं। वे स्वयंभू माने गए हैं।
सभी देवी देवता अपने साजो सज्जा के लिए वस्त्र व आभूषण धारण किए होते हैं, लेकिन वहीं बात करें भोलेनाथ की तो ये न आभूषण धारण करते हैं और ना ही वस्त्र।
महादेव जो धारण करते हैं, उनके भी बड़े व्यापक अर्थ हैं। शिव अपने स्वरूप में 10 वस्तुएं धारण किए रहते हैं :
जटायें :
भगवान शिव की जटायें आकाश और चंद्रमा के मन की प्रतिष्ठा हैं। ये अनंत अंतरिक्ष की प्रतीक हैं। इन्हीं से गंगा का अवतरण भी हुआ है।
चंद्र :
उनकी उलझी जटाओं में चंद्रमा विराजमान है जो मन का प्रतीक है। भगवान शिव का मन चांद की तरह भोला, निर्मल, उज्ज्वल और जाग्रत है।
त्रिनेत्र :
शिव की तीन आंखें हैं। उनकी भृकुटि के मध्य में तीसरा नेत्र है। इसीलिए इन्हें त्रिलोचन भी कहते हैं। उनकी तीन आंखें सत्त्व, रज और तम (त्रिगुण) का प्रतीक हैं। भगवान शिव की ये आंखें प्राकृतिक, वर्तमान और भविष्य (तीन कालों) का प्रतीक हैं। साथ ही उनकी आंखें स्वर्ग, मृत्यु और पाताल (तीनों लोकों) को दर्शाती हैं।
सर्पहार :
शिव के गले का सर्प उनके अधीन है। सर्प जैसे तमोगुणी व हिंसक जीव को भगवान शिव ने अपने वश में कर रखा है। शिव के गले में हर समय लिपटे रहने वाले नाग कोई और नहीं बल्कि नागराज वासुकी हैं। वासुकी नाग ऋषि कश्यप के दूसरे पुत्र थे। कहा जाता है कि नागलोक के राजा वासुकी शिव के परम भक्त थे।
त्रिशूल :
शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र त्रिशूल है। त्रिशुल के तीनों फन भूत, भविष्य और वर्तमान को दर्शाते हैं। भगवान शिव का तीनों पर नियंत्रण हैं। उनका त्रिशूल भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है।
डमरू :
शिव के एक हाथ में डमरू है, जिसे वह तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। भगवान शिव के डमरू का नाद ही ब्रह्मा रूप है।
मुंडमाला :
शिव के गले में मुंडमाला है। शिव की मुंडमाला मृत्यु को वश में करने का संकेत देती है।
बाघ की खाल :
शिव अपने शरीर पर व्याघ्र चर्म यानी बाघ की खाल पहनते हैं, जो हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है। शिव व्याघ्रचर्म का ये संकेत है कि शिव ने हिंसा और अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है।
भस्म :
शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। उनके शरीर पर लगे भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है। शिवलिंग का अभिषेक भस्म से भी किया जाता है।
वृषभ :
शिव का वाहन वृषभ यानी बैल है। महादेव इस चार पैर वाले जानवर की सवारी करते हैं। शिव के इस वाहन का नाम नंदी है। नंदी के चार पैर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के संदेश को व्यक्त करते हैं जो महादेव की कृपा से ही मिलते हैं।
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Conclusion :
इस तरह शिव-स्वरूप हमें बताता है कि उनमें ही सारी सृष्टि समाई हुई है। उनका रूप विराट और अनंत है, महिमा अपरंपार है। जितने सरल शिव हैं, उतना ही विकट उनका स्वरूप है। भगवान शिव के इस अद्भुत स्वरूप से हमें कई बातें सिखने को मिलती हैं।
शिव अनादि और अनंत हैं। उन्हें किसी विशेष देश और काल में निरूपित करना उस शाश्वत सिद्धात को सीमित करना है, जो सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ है।