Ahoi Ashtami 2023 Date| कब है अहोई अष्टमी व्रत? जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और तारों को देखने का समय

Ahoi Ashtami 2023 Date in Hindi – कब है अहोई अष्टमी व्रत? जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, और तारों को देखने का समय

अहोई अष्टमी का पर्व हर साल कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। अहोई अष्टमी व्रत (Ahoi Ashtami 2023) में माताएं अपनी संतान की अपने संतान की खुशहाली, सुख-समृद्धि, रक्षा और लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। अहोई अष्टमी का व्रत इस वर्ष 5 नवम्बर 2023, रविवार के दिन किया जाएगा। आइए जानते है अहोई अष्टमी व्रत का महत्व,पूजा विधि, पूजा की सामग्री, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और आरती…

Table of Contents

Ahoi Ashtami
Ahoi Ashtami

HIGHLIGHTS :

• कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) का व्रत।
• महिलाएं इस दिन संतान की लंबी आयु और खुशहाल जीवन के लिए रखती हैं निर्जला व्रत।
• इस दिन माता पार्वती की मां अहोई के रूप में की जाती है पूजा।

Ahoi Ashtami 2023 ( अहोई अष्टमी व्रत )

अहोई अष्टमी के दिन माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा की जाती है. जिनकी माताएं इस दिन व्रत रखती हैं उनके बच्चों की रक्षा स्वयं माता पार्वती करती हैं। अहोई अष्टमी को बहुत श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाता है। इस दिन भगवान गणेश और कार्तिकेय की माता पार्वती की उपासना की जाती है।

संतान की लम्बी आयु के लिए रखें अहोई का व्रत

हर वर्ष कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन अहोई व्रत रखा जाता है। यह निर्जल व्रत संतान की दीर्घायु एवं अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखा जाता है। जिससे सभी संकटों से संतान की रक्षा हो सके, एवं जो दम्पति लंबे समय से सन्तान सुख से वंचित हैं उनके लिए भी यह व्रत बेहद आवश्यक है।

अहोई माता की कृपा से सन्तान के जीवन के सभी विघ्न दूर होते हैं। माता प्रसन्न होकर सभी की संतानों की रक्षा करती हैं। यह व्रत अष्टमी तिथि को होता है और इस दिन अहोई माता की आराधना होती है, इसलिए इसे अहोई अष्टमी कहा जाता है।

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व (Ahoi Ashtami Importance)

हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी का व्रत भी अन्य व्रतों की तरह अत्यंत महत्वपूर्ण है। संतान की भलाई के लिए यह व्रत रखा जाता है। कहते हैं कि अहोई अष्टमी का व्रत बहुत कठिन होता है। माना जाता है कि अहोई अष्टमी का व्रत काफी शुभदायी और फलदायी माना जाता है। इस व्रत को पूरे विधि विधान से करने पर माता अहोई की विशेष कृपा प्राप्त होती है और संतान की सुखदायी और लंबी उम्र की कामना पूरी होती है।

इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। मान्यता है कि अहोई अष्टमी के दिन व्रत कर विधि विधान से अहोई माता की पूजा करने से मां पार्वती अपने संतान की तरह ही आपके बच्चों की रक्षा करती हैं। साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी यह व्रत खास महत्व रखता है।

अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त (Ahoi Ashtami 2023 Puja ka Shubh Muhurt)

अहोई अष्टमी का व्रत5 नवम्बर 2023, रविवार
अष्टमी तिथि प्रारंभ5 नवम्बर 2023, रविवार, 01:00 AM
गोवर्धन राधा कुण्ड अर्ध रात्रि स्नान मुहूर्त5 नवंबर, 11:37 PM से 12:29 AM, 6 नवंबर
पूजा का शुभ समय व मुहूर्त5 नवंबर, 05:33 PM से 06:52 PM तक
तारों को देखने का समयरविवार 5 नवंबर- शाम 05:58 PM
पूजा की अवधि1 घंटा 18 मिनट
अहोई अष्टमी के दिन चंद्रोदय का समय रविवार 5 नवंबर, देर रात 12:02 मिनट पर
सर्वार्थ सिद्धि योग5 नवंबर, 06:36 AM से 10:29 AM तक
अष्टमी तिथि समाप्ति6 नवंबर 2023, सुबह 3:18 बजे तक

अहोई अष्टमी पूजा की सामग्री (Ahoi Ashtami Puja Samagri)

अहोई माता का चित्र या पोस्टर, अहोई माता की एक लॉकेट (चांदी या सफेद धातु), चांदी के दो मोती, स्याहु की माला, एक चौकी, जल से भरा हुआ कलश और ढक्कन, हल्दी, एक पात्र, दूध-भात, मीठे पुए या हलवा, रोली, लाल रंग के फूल, दीपक, गेंहू के सात दाने, चावल, मूली, सिंघाड़ा या फल, कुछ दक्षिणा (बयाना) आदि।

अहोई अष्टमी व्रत पूजा विधि (Ahoi Ashtami Vrat Puja Vidhi)

अहोई अष्टमी व्रत में माताएं अपनी संतान की अपने संतान की खुशहाली, सुख-समृद्धि, रक्षा और लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और शाम के समय आकाश में तारे देखने और अर्घ्य देने के बाद महिलाएं व्रत पारण करती हैं।

इस दिन किया गया यह व्रत सभी माताओं के लिए शुभ फल लेकर आता है। माता अहोई सभी बच्चों को संकट से बचाती हैं एवं अपनी संतान की तरह उनका ध्यान रखती हैं। आइए जानते हैं अहोई अष्टमी की पूजा विधि….

• अहोई अष्टमी का व्रत करने वाली महिलाएं सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सफाई करके और स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत रखने का संकल्प लें।
• इसके बाद दीवार पर गेरू और चावल से अहोई माता और स्याहु व उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं। या फिर आप चाहें तो बाजार से भी पोस्टर इस्तेमाल कर सकते हैं।
• सूर्यास्त के बाद अहोई माता की पूजा करने से पहले पृथ्वी को पवित्र करके चौक पूरें।
• इसके साथ ही पूजन के लिए अहोई माता के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर जल से भरा कलश रखें.
• कलश पर हल्दी से स्वास्तिक बना लें।
• रोली से कलश पर सात टीके लगाएं।
• अब कलश को ढक दें और ढक्कन पर मूली, सिंघाड़ा या पानी फल रखें।
• अहोई माता यानी पार्वती मां के सामने एक पात्र में चावल भरकर रख दें।
• रोली-चावल से अहोई माता की पूजा करें।
• मां के सामने एक दीपक जला दें।
• लाल रंग के फूल चढ़ाएं।
• माता को मीठे पुए या आटे के हलवे का भोग लगाएं।
• एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें।
• हाथ में गेंहू के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनें।
• पूजा व व्रत कथा सुनने के बाद कलश के जल तारों को अर्घ्य देकर अपने से बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।
• अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें।
• जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास या पंडित के चरण छूकर उन्हें दे दें।
• अहोई माता की विधिवत पूजा करने के बाद स्याहु माला धारण की जाती है। स्याहु की माला में चांदी की मोती और अहोई माता की लॉकेट होती है।
• अष्टमी तिथि को माताएं चांदी की माला भी पहनती हैं, जिसमें हर साल दो चांदी के मोती जोड़ती हैं।

Ahoi Ashtami 2022 Puja Vidhi
Ahoi Ashtami Puja Vidhi

Ahoi Ashtami Vrat Katha ( अहोई अष्टमी व्रत कथा )

पौराणिक कथाओं के अनुसार , एक शहर में एक साहूकार के 7 लड़के रहते थे। साहूकार की पत्नी दिवाली पर घर लीपने के लिए अष्टमी के दिन मिट्टी लेने गई। जैसे ही मिट्टी खोदने के लिए उसने कुदाल चलाई कुदाल स्याहु की मांद में जा लगी, जिससे कि स्याहु का बच्चा मर गया। साहूकार की पत्नी को इसे लेकर काफी पश्चाताप हुआ, इसके कुछ दिन बाद ही उसके एक बेटे की मौत हो गई।

इसके बाद एक-एक करके उसके सातों बेटों की मौत हो गई। इस कारण साहूकार की पत्नी शोक में रहने लगी। एक दिन साहूकार की पत्नी ने अपनी पड़ोसी औरतों को रोते हुए अपना दुख की कथा सुनाई, जिस पर औरतों ने उसे सलाह दी कि यह बात साझा करने से तुम्हारा आधा पाप कट गया है। अब तुम अष्टमी के दिन स्याहु और उसके बच्चों का चित्र बनाकर मां भगवती की पूजा करो और क्षमा याचना करो।

भगवान की कृपा हुई तो तुम्हारे पाप नष्ट हो जाएंगे। ऐसा सुनकर साहूकार की पत्नी हर साल कार्तिक मास की अष्टमी को मां अहोई की पूजा व व्रत करने लगी। माता रानी कृपा से साहूकार की पत्नी फिर से गर्भवती हो गई और उसके कई साल बाद उसके फिर से सात बेटे हुए। तभी से अहोई अष्टमी का व्रत करने की प्रथा चली आ रही है।

अहोई अष्टमी की व्रत कथा (Ahoi Ashtami  Story)

हिंदू धर्म में प्रचलित एक कथा के मुताबिक, एक साहुकार से सात बेटे और एक बेटी थीं। सातों पुत्रों की शादी हो चुकी थी। दिवाली मनाने के लिए साहुकार की बेटी घर आई हुई थी। दिपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं के साथ बेटी मिट्टी लाने जंगल निकली। साहूकार की बेटी जिस जगह से मिट्टी निकाल रही थी, वहां खुरपी की धार से स्याहू का एक बेटा मर गया। स्याहू इस बात से रोने लगी और गुस्से आकर बोली, “मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी”।

इस बात को सुन वह घबरा गई और उसने अपनी सातों भाभियों को एक-एक कर उसके बदले में कोख बंधवाने को कहा। सबसे छोटी बहू को ननद का दर्द देखा ना गया और वो अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो गई। इस घटना के बाद उसके जो बच्चे होते तो सातवें दिन मर जाते। ऐसे करते-करते छोटी बहू के सात बेटों की मृत्यु हुई। अपने साथ बार-बार होती इस घटना को देख उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने हल बताते हुए सलाह दी कि वह सुरभी गाय की सेवा करे।

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छोटी बहू ने सुरभी गाय की सेवा और उसकी सेवा से प्रसन्न होकर सुरभी गाय उसे स्याहु के पास ले जाती है, जिसने उसे श्राप दिया था। स्याहु के घर जाते हुए रास्ते में छोटी बहू आराम के लिए रुकती है। अचानक वह देखती है कि एक सांप गरुड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है। वह सांप को मार देती है। लेकिन गरुड़ पंखनी को खून देख गलती से लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे की हत्या कर दी। वह क्रोध में आकर कुछ बोलती इससे पहले उसे बताया जाता है कि उसने सांप को मारकर बच्चे की जान बचाई।

गरुड़ पंखनी इस बात पर प्रसन्न होकर छोटी बहू को स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां, स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू का आशीर्वाद देती है। इसके बाद कार्तिक कृष्ण की अष्टमी तिथि के दिन उसने माता का व्रत रखा और पूजा की। इसके बाद छोटी बहू का घर फिर से हमेशा के लिए हरा-भरा हो गया। इस तरह से संतान की लंबी आयु और प्राप्ति के लिए इस व्रत को किया जाने लगा।

Ahoi Ashtami Ke Upay : राशि अनुसार अहोई अष्टमी पर करें ये उपाय

जिस तरह करवा चौथ का व्रत पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है। उसी प्रकार माताएं अहोई अष्टमी का उपवास अपनी संतान की सुख-समृद्धि और लंबी आयु के लिए करती हैं। हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। अहोई अष्टमी पर राशि अनुसार करें ये उपाय…

मेष राशि:

अहोई अष्टमी के दिन मेष राशि की व्रती महिलाओं को अहोई माता की तस्वीर पर सिंदूर चढ़ाना चाहिए। इससे उनकी संतान के सुखों में वृद्धि होती है।

वृष राशि:

संतान के जीवन में सुख-शांति के लिए वृष राशि के महिलाएं भगवान शिव को सफेद चंदन अर्पित करें।

मिथुन राशि:

मिथुन राशि की महिलाएं अहोई माता को द्रव्य दक्षिणा भेंट करें। आप चाहें तो घर में एक पौधा भी लगा सकती हैं।

कर्क राशि:

इस राशि की महिलाएं अहोई माता को फलों का भोग जरूर लगाएं। इससे संतान का स्वास्थ्य हमेशा ठीक रहेगा।

सिंह राशि:

अहोई अष्टमी के दिन सिंह राशि की महिलाएं 108 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। इससे ना सिर्फ आपकी संतान का स्वास्थ्य बेहतर रहेगा बल्कि उसको अपने जीवन में कभी भय नहीं रहेगा।

कन्या राशि:

कन्या राशि की महिलाएं अहोई मां को सफेद फूल अर्पित करें। इससे आपकी संतान को धन का लाभ होगा।

तुला राशि:

तुला राशि की महिलाएं अहोई अष्टमी के दिन माता अहोई को श्रृंगार अर्पित करें। इससे आपकी संतान को कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी।

वृश्चिक राशि:

वृश्चिक राशि की महिलाएं अहोई माता की कथा सभी को सुनाएं, इससे आपकी संतान हमेशा धर्म के मार्ग पर चलेगी।

धनु राशि:

अहोई अष्टमी के दिन धनु राशि की महिलाएं ध्यान लगाकर भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। इससे संतान की सफलता के रास्ते में कोई बाधा नहीं आएगी।

मकर राशि:

मकर राशि की महिलाएं अहोई माता को खीर का भोग लगाएं। इससे आपकी संतान को सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होगी।

कुंभ राशि:

कुंभ राशि की महिलाएं अहोई माता की पूजा के दौरान उन्हें आलता अर्पित करें और खुद को भी लगाएं। इससे आपकी संतान को उसके शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी।

मीन राशि:

मीन राशि की महिलाएं अहोई माता को सिंदूर अर्पित करें। इससे संतान को भविष्य में काफी सुख प्राप्त होगा।

जानें इस दिन क्या करें और क्या नहीं (Ahoi Ashtami Don’s)

अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) के दिन माताएँ अपने संतान की भलाई के लिए उषाकाल (भोर) से लेकर गोधूलि बेला (साँझ) तक उपवास करती हैं। साँझ के दौरान आकाश में तारों को देखने के बाद व्रत तोड़ा जाता है। इस दिन संतान की लंबी आयु की कामना करते हुए तारों की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं इस व्रत के दौरान क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

Ahoi Ashtami Vrat: अहोई अष्टमी व्रत में इन बातों का खास ख्याल रखें

इस दिन माता अहोई की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती और उनके पुत्रों की भी पूजा की जाती है। मां अपनी संतान की लंबी आयु की कामना के लिए ये व्रत रखती हैं और श्रद्धा भाव से पूजा करती हैं। आइए जानते हैं  अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) के दिन किन बातों का रखें खास ख्याल।

• इस दिन अहोई माता की पूजा करने से पहले भगवान गणेश की पूजा जरूर करें।

• अहोई अष्टमी का व्रत तारों को देखकर खोला जाता है। इस दिन तारों के निकलने के बाद अहोई माता की पूजा की जाती है।

• इस दिन कथा सुनते समय 7 अनाज अपने हाथों में जरूर रखें। पूजा के बाद यह अनाज किसी गाय को खिला दें।

• अहोई अष्टमी के व्रत में पूजा करते समय बच्चों को साथ में जरूर बैठाएं और अहोई माता को भोग लगाने के बाद वह प्रसाद अपने बच्चों को जरूर खिलाएं।

• इस व्रत में कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। जैसे चाकू, कैंची आदि नुकीली चीजों से इस दिन दूरी बनाकर रखनी होती है।

• इस दिन व्रत के बाद भी दूध, दही, खीर आदि सफेद खाद्य पदार्थों से दूर रहना चाहिए।

• इस दिन महिलाओं द्वारा किसी भी धारदार वस्तु का प्रयोग वर्जित बताया गया है।

अगर बेटे-बेटी को संतान नहीं हो रही हो तो अहोई अष्टमी पर करें ये उपाय,

इस साल 17 अक्टूबर को अहोई अष्टमी के दिन गुरु-पुष्य नक्षत्र भी लग रहा है। अगर माताएं इस शुभ योग में ये उपाय करेंगी तो उनकी संतान के जीवन में हमेशा सुख, शांति, समृद्धि और धन-लक्ष्मी का वास होगा। इस दिन नि:संतान महिलाएं भी संतान प्राप्ति के लिए उपवास करती हैं।

• संतान का सुख पाने के लिए इस दिन अहोई माता और शिव जी को दूध-चावल का भोग लगाएं. दूध-चावल का भोग लगाना शुभ माना गया है।

• चांदी की नौ मोतियां लेकर लाल धागे में पिरो कर माला बनायें। अहोई माता को माला अर्पित करें और संतान को संतान प्राप्ति की प्रार्थना करें।

• पूजा के उपरान्त अपनी संतान और उसके जीवन साथी को दूध भात खिलाएं।

• अगर बेटे को संतान नहीं हो रही हो तो बहू को, और बेटी को संतान नहीं हो पा रही हो तो बेटी को माला धारण करवाएं।

अहोई अष्टमी का दिन (Ahoi ashtami 2023) अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है

करवा चौथ के समान अहोई अष्टम उत्तर भारत में ज्यादा प्रसिद्ध है। अहोई अष्टमी व्रत का दिन करवा चौथ के चार दिन बाद और दीवाली पूजा से आठ दिन पहले पड़ता है। अहोई अष्टमी का दिन अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह व्रत अष्टमी तिथि (माह का आठवाँ दिन) के दौरान किया जाता है।

अहोई अष्टमी पर राधा कुंड में स्नान का है विशेष महत्व (Ahoi ashtami)

भारत में एक ऐसा कुंड है जिसमें यदि पति और पत्नि दोनों अहोई अष्टमी के दिन स्नान कर लें तो उन्हें शीघ्र ही संतान प्राप्ति होती है। मथुरा नगरी से लगभग 26 किलोमीटर दूर गोवर्धन परिक्रमा में राधा कुंड स्थित है। राधा कुंड के बारे में एक पौराणिक मान्यता यह भी है कि नि:संतान दंपत्ति कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि को दंपत्ति राधा कुंड में एक साथ स्नान करते हैं तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है। इसी कारण से इस कुंड में अहोई अष्टमी पर स्नान करने के लिए दूर- दूर से लोग आते हैं।

अहोई अष्टमी का यह पर्व यहां पर प्राचीन काल से मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह प्रथा द्वापर युग से चली आ रही है। इस दिन पति और पत्नि दोनों ही निर्जला व्रत रखते हैं और मध्य रात्रि में राधा कुंड में डूबकी लगाते हैं। तो ऐसा करने पर उस दंपत्ति के घर में बच्चे की किलकारियां जल्द ही गूंज उठती है। इतना ही नहीं जिन दंपत्तियों की संतान की मनोकामना पूर्ण हो जाती है, वह भी अहोई अष्टमी के दिन अपनी संतान के साथ यहां राधा रानी की शरण में यहां हाजरी लगाने आते हैं और इस कुंड में स्नान करते हैं।

अहोई अष्टमी और राधाकुण्ड से जुड़ी कथा

बहुत समय पहले झाँसी के निकट एक नगर में चन्द्रभान नामक साहूकार रहता था। उसकी पत्नी चन्द्रिका बहुत सुंदर, सर्वगुण सम्पन्न, सती साध्वी, शिलवन्त चरित्रवान तथा बुद्धिमान थी। उसके कई पुत्र-पुत्रियां थी परंतु वे सभी बाल अवस्था में ही परलोक सिधार चुके थे। दोनो पति-पत्नी संतान न रह जाने से व्यथित रहते थे। वे दोनों प्रतिदिन मन में सोचते कि हमारे मर जाने के बाद इस अपार धन-संपदा को कौन संभालेगा। एकबार उन दोनों ने निश्चय किया कि वनवास लेकर शेष जीवन प्रभु-भक्ति में व्यतीत करें।

इस प्रकार वे दोनों अपना घर-बार त्यागकर वनों की ओर चल दिए। रास्ते में जब थक जाते तो रुक कर थोड़ा विश्राम कर लेते और फिर चल पड़ते। इस प्रकार धीरे-धीरे वे बद्रिका आश्रम के निकट शीतल कुण्ड जा पहुंचे। वहां पहुंचकर दोनों ने निराहार रह कर प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार निराहार व निर्जल रहते हुए उन्हें सात दिन हो गए तो आकाशवाणी हुई कि तुम दोनों प्राणी अपने प्राण मत त्यागो। यह सब दुख तुम्हें तुम्हारे पूर्व पापों के कारण भोगना पड़ा है।

Ahoi Ashtami Radhakund Katha

यदि तुम्हारी पत्नी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली अहोई अष्टमी को अहोई माता का व्रत और पूजन करे तो अहोई देवी प्रसन्न होकर साक्षात दर्शन देगी। तुम उससे दीर्घायु पुत्रों का वरदान मांग लेना। व्रत के दिन तुम राधाकुण्ड में स्नान करना। चन्द्रिका ने आकाशवाणी के बताए अनुसार विधि-विधान से अहोई अष्टमी को अहोई माता का व्रत और पूजा-अर्चना की और तत्पश्चात राधाकुण्ड में स्नान किया।

जब वे स्नान इत्यादि के बाद घर पहुँचे तो उस दम्पत्ति को अहोई माता ने साक्षात दर्शन देकर वर मांगने को कहा। साहूकार दम्पत्ति ने हाथ जोड़कर कहा, “हमारे बच्चे कम आयु में ही प्रलोक सिधार जाते है। आप हमें बच्चों की दीर्घायु का वरदान दें। तथास्तु! कहकर अहोई माता अंतर्ध्यान हो गई। कुछ समय के बाद साहूकार दम्पत्ति को दीर्घायु पुत्रों की प्राप्ति हुई और वे सुख पूर्वक अपना गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे।

राधा कुंड में स्नान की पौराणिक मान्यता

एक पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण गोवर्धन में गाय चराने जाते थे। इसी दौरान अरिष्टासुर नाम के एक असुर ने गाय के बछड़े का रूप धारण करके श्रीकृष्ण पर हमला करना चाहा लेकिन श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। राधा कुंड क्षेत्र पहले राक्षस अरिष्टासुर की नगरी अरीध वन थी।

चूंकि श्रीकृष्ण ने अरिष्टासुर का वध गौवंश के रूप में किया था, इसलिए राधा जी ने श्रीकृष्ण को चेताया कि उन्हे गौवंश हत्या का पाप लगेगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। इस पर राधाजी ने भी बगल में अपने कंगन से एक दूसरा कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। श्रीकृष्ण के खोदे गए कुंड को श्याम कुंड और राधाजी के कुंड को राधा कुंड कहते हैं।

एक दूसरी मान्यता के अनुसार ब्रह्म पुराण व गर्ग संहिता के गिरिराजखण्ड के अनुसार महारास के बाद श्रीकृष्ण ने राधाजी की इच्छानुसार उन्हें वरदान दिया था कि जो भी दंपत्ति राधा कुंड में इस विशेष दिन स्नान करेगा उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। कहते हैं श्रीकृष्ण और राधा ने स्नान करने के बाद महारास रचाया था। ऐसा माना जाता है कि आज भी कार्तिक मास के पुष्य नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण रात्रि बारह बजे तक राधाजी और उनकी आठ सखियों के साथ महारास करते हैं।

अहोई माता की आरती (Ahoi Mata Ki Aarti)

जय अहोई माता, जय अहोई माता ।
तुमको निसदिन ध्यावतहर विष्णु विधाता ॥
॥ जय अहोई माता..॥

ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमलातू ही है जगमाता ।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावतनारद ऋषि गाता ॥
॥ जय अहोई माता..॥

माता रूप निरंजनसुख-सम्पत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्यावतनित मंगल पाता ॥
॥ जय अहोई माता..॥

तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव प्रकाशकजगनिधि से त्राता ॥
॥ जय अहोई माता..॥

जिस घर थारो वासावाहि में गुण आता ।
कर न सके सोई कर लेमन नहीं धड़काता ॥
॥ जय अहोई माता..॥

तुम बिन सुख न होवेन कोई पुत्र पाता ।
खान-पान का वैभवतुम बिन नहीं आता ॥
॥ जय अहोई माता..॥

शुभ गुण सुंदर युक्ताक्षीर निधि जाता ।
रतन चतुर्दश तोकूकोई नहीं पाता ॥
॥ जय अहोई माता..॥

श्री अहोई माँ की आरतीजो कोई गाता ।
उर उमंग अति उपजेपाप उतर जाता ॥

जय अहोई माता, जय अहोई माता ।

Conclusion

दोस्तों, इस Post में हमने, कब है अहोई अष्टमी व्रत? जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और आरती (Ahoi Ashtami 2023 Date) के बारे में बताया। हमारी ये पोस्ट कैसी लगी, कृपया कमेन्ट करके बताएं। अगर पोस्ट अच्छी लगी हो या आपको इस Post से related कोई सवाल या सुझाव है तो नीचे Comment करें और इस Post को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

(Note : ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)

by Tripti Srivastava
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