नयी उम्मीदें – मेरी कलम से | Hindi Kavita by Tripti Srivastava| Jovial Talent

नयी उम्मीदें – मेरी कलम से    Hindi Kavita 

 

नयी उम्मीदें - मेरी कलम से
Hindi Poem by Tripti Srivastava

 

नयी उम्मीदें – मेरी कलम से

 

खुद ही से मैं नज़रें चुराने लगी हूं,

उन यादों से दामन छुड़ाने लगी हूँ ।

खुद ही से खुद ही का पता पूछती हूँ,

न जाने कहाँ मैं विलीन हो चुकी हूँ ।

 

अरमानों को अपने दबाने लगी हूँ,

पहचान अपनी भुलाने लगी हूँ ।

भटकने लगी राह मंज़िल की अपनी,

कहूँ क्या किधर थी, किधर को चली हूँ ।

 

मिल जाये न साथी कोई बीते दिनों का,

ऐसे लोगों से अब मैं कतराने लगी हूँ ।

मजबूरियों की बोझ तले दबने लगी हूँ,

हालात के बन्धनों में मैं जकड़ने लगी हूँ।

 

पर अपनी जिम्मेदारियों को निभाना तो होगा,

धूमिल पहचान अपनी दिखाना भी होगा।

उलझनें अपनी खुद मैं सुलझाने लगी हूँ,

सोयी उम्मीदें को फिर से जगाने लगी हूँ।

 

जमती धूलों को अब मैं हटाने चली हूँ,

राह मंज़िल की अपनी बनाने चली हूँ ।

किसी मोड़ पर मिल ही जायेगी ‘तृप्ति‘ ,

अपने कदमों को अब मैं बढ़ाने लगी हूँ ।

 

तृप्ति श्रीवास्तव

 

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by Tripti Srivastava
मेरा नाम तृप्ति श्रीवास्तव है। मैं इस वेबसाइट की Verified Owner हूँ। मैं न्यूमरोलॉजिस्ट, ज्योतिषी और वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ हूँ। मैंने रिसर्च करके बहुत ही आसान शब्दों में जानकारी देने की कोशिश की है। मेरा मुख्य उद्देश्य लोगों को सच्ची सलाह और मार्गदर्शन से खुशी प्रदान करना है।

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