एक माँ के मन का उदगार – मेरी कलम से | Hindi Kavita by Tripti Srivastava

एक माँ के मन का उदगार – Hindi Kavita

 

एक माँ के मन का उदगार
Hindi poem on Mother

जब तू सिर्फ मेरा एहसास था,
मेरा गर्भ ही तेरा संसार था ,
मुझसे जुड़ा था नाल का बंधन,
दिल मेरा पर तेरी धड़कन ।

 

उस डोर को वक़्त ने काट दिया,
तुझको एक आस्तित्व दिया,
अब जो मेरा एहसास था,
मेरे जिगर के पास था ।

 

अब तू थोड़ा समझदार हुआ,
पढ़-लिखकर होनहार हुआ,
विस्तृत तेरा व्यापार हुआ,
तेरा खुद का भी परिवार हुआ ।

पर जब मैं थोड़ी वृद्ध हुई,
तेरे कंधो पर बोझ हुई,
अब नही मैं तेरी प्यार थी,
सिर्फ तेरे पर भार थी ।

 

मैं पगली कुछ समझ न पाई,
दिल अपना बहला न पाई ,
कैसे मेरे मन को मिलेगी ‘तृप्ति‘ ,
जब तुझको मुझसे ही रही न प्रीति ।

 

करूँ क्या, अब तो यही मुझे स्वीकार है,
ये आश्रम ही मेरा संसार है,
पर तू अब भी मेरा दुलार है,
और मेरे जीने का आधार है।

 

          —तृप्ति श्रीवास्तव

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by Tripti Srivastava
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