हिंदू धर्म में परिक्रमा का महत्व: आखिर क्यों की जाती है परिक्रमा?| Parikrama 2024

परिक्रमा का महत्व

कहते हैं परिक्रमा करने से व्यक्ति के तमाम तरह के पाप दूर होते हैं, और जीवन से समस्याओं का साया भी दूर होने लगता है। यही वजह है कि हिंदू धर्म में मंदिरों में परिक्रमा के साथ-साथ मांगलिक कार्यों में भी परिक्रमा या फेरी लगाने की परंपरा है।

परिक्रमा

परिक्रमा करने का सही तरीका-:

परिक्रमा या प्रदक्षिणा का अर्थ हुआ दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए देवी-देवता की उपासना करना। इसलिए परिक्रमा दक्षिणावर्त दिशा में करनी चाहिए।

जब भी देवी-देवताओं की परिक्रमा करें तो इस बात को सुनिश्चित करें कि, परिक्रमा दायें की तरफ से शुरू करनी चाहिए (क्लॉक वाइज)।

क्यों की जाती है दक्षिणावर्ती परिक्रमा

दक्षिणावर्ती परिक्रमा करने के पीछे का तथ्य ये है कि दैवीय शक्ति की आभा मंडल की गति जिसे हम सामान्य भाषा में सकारात्मक ऊर्जा कहते हैं, वो हमेशा दक्षिणावर्ती होती है।

यदि लोग इसके विपरीत दिशा में वामवर्ती परिक्रमा करेंगे तो उस सकारात्मक ऊर्जा का हमारे शरीर में मौजूद ऊर्जा के साथ टकराव पैदा होता है। इससे हमारा तेज नष्ट होता है। इसलिए वामवर्ती परिक्रमा को शास्त्रों में वर्जित माना गया है।

परिक्रमा की कहानी (Parikrama Story Hindi)

परिक्रमा की कथा परम पूजनीय भगवान श्रीगणेश से जुड़ी हुई है। यह उनकी चतुराई और अपने माता-पिता के प्रति अपने भक्ति को प्रदर्शित करती है।

एक बार भगवान कार्तिक व भगवान गणेश में से कौन ज्यादा श्रेष्ठ हैं, यह दुविधा दूर करने के लिए भगवान शिव ने दोनों को ब्रह्मांड के तीन चक्कर लगाकर आने को कहा। जो जल्दी आ जाएगा, वह विजयी (Parikrama Ki Katha) माना जाएगा।

यह देखकर भगवान कार्तिक तो तेज गति से ब्रह्मांड के चक्कर लगाने निकल पड़े लेकिन भगवान गणेश से अपनी चतुराई का परिचय देते हुए अपने पिता शिव और माता पार्वती के चारों ओर तीन बार प्रदक्षिणा कर ली।

यह देखकर भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न हुए और गणेश को विजयी घोषित किया। इसके बाद से परिक्रमा हिंदू धर्म का अभिन्न अंग बन गयी।

अलग-अलग तरह की परिक्रमा और उनका महत्व-:

सिर्फ देवी-देवताओं की ही नहीं पीपल, अश्वत्थ, तुलसी समेत अन्य शुभ प्रतीक पेड़ों के अलावा, नर्मदा, गंगा आदि की परिक्रमा भी की जाती है क्योंकि सनातन धर्म में प्रकृति को भी साक्षात देव समान माना गया है।

परिक्रमा

आइए परिक्रमा के बारे में विस्तार से जानते हैं।

देव मंदिर परिक्रमा:-

शास्त्रों में कहा गया है कि मंदिर में पूजा के बाद भगवान की परिक्रमा करने से ईश्वर की कृपा बनी रहती है और पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं, देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और भक्तों के दुख-संकट दूर करते हैं।

इस परिक्रमा का मतलब सीधे तौर पर जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम, तिरुवन्नमल, तिरुवनन्तपुरम, शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग आदि की परिक्रमा से जोड़कर देखा जाता है।

देव मूर्ति परिक्रमा:-

जब हम मंदिरों में जाकर भगवान शिव, देवी दुर्गा, भगवान गणेश, भगवान विष्णु, भगवान हनुमान, इत्यादि मूर्तियों की परिक्रमा करते हैं तो इन्हें देव मूर्ति परिक्रमा कहा जाता है।

नदी परिक्रमा:-

तीसरी परिक्रमा नदी परिक्रमा होती है जिसे बेहद ही मुश्किल कहा जाता है। इसमें प्रमुख और पावन नदियों जैसे मां नर्मदा, सिंधु नदी, सरस्वती, गंगा, यमुना, सरयू, शिप्रा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, इत्यादि नदियों की परिक्रमा का विधान बताया गया है।

नदियों की परिक्रमा करने वालों को सालों साल पहाड़ों जंगलों आदि से होकर गुजरना पड़ता है। ऐसे में स्वाभाविक है कि यह परिक्रमा बिल्कुल भी आसान नहीं होती है।

पर्वत परिक्रमा:-

नाम से ही जाहिर है यह परिक्रमा पर्वतों की होती है। क्योंकि भारत देश में पर्वत भी पूजे जाते हैं ऐसे में लोग कई बार पर्वतों की भी परिक्रमा करते हैं। जैसे गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा, गिरनार पर्वत की परिक्रमा, कामदगिरी, मेरु पर्वत, हिमालय, नीलगिरी, तिरुमलै आदि पर्वतों की परिक्रमा।

वृक्ष परिक्रमा:-

हिंदू धर्म में जो भी वृक्ष या पेड़ पौधे पूजनीय माने जाते हैं लोग उनकी भी परिक्रमा करते हैं और इसे वृक्ष परिक्रमा कहा जाता है। जैसे पीपल के पेड़ की परिक्रमा की जाती है, बरगद के पेड़, तुलसी के पौधे की परिक्रमा की जाती है, इत्यादि। इस परिक्रमा का विशेष महत्व बताया गया है।

तीर्थ परिक्रमा:-

तीर्थ स्थल वाले शहरों की परिक्रमा को तीर्थ परिक्रमा कहा गया है। जैसे चौरासी कोस की परिक्रमा, अयोध्या, उज्जैन, पंचकोशी प्रयाग यात्रा, इत्यादि।

चार धाम परिक्रमा:-

हिंदू धर्म के प्रमुख चार धामों की परिक्रमा को चार धाम परिक्रमा कहा जाता है। जैसे छोटी चार धाम की यात्रा जिसमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री, और गंगोत्री आते हैं या फिर बड़ी चार धाम की यात्रा जिसमें बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ और रामेश्वरम की यात्रा करना आता है।

भरतखंड परिक्रमा:-

जब पूरे भारत की परिक्रमा की जाती है तो इसे भारत खंड परिक्रमा कहते हैं। मुख्य तौर पर संत और साधु यह यात्रा करते हैं। यह यात्रा बेहद ही मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होती है। यह सिंधु से शुरू होकर कन्याकुमारी में खत्म होती है।

परिक्रमा

विवाह परिक्रमा:-

हिंदू धर्म की शादियों में वर और वधू अग्निकुंड के चारों तरफ सात बार परिक्रमा करते हैं। इसके बाद ही विवाह संपन्न होता है और इसे विवाह परिक्रमा कहा जाता है।

किस देवी-देवता की कितनी बार परिक्रमा करनी चाहिए?

  • भगवान शिव: आधी परिक्रमा
  • माँ दुर्गा: एक परिक्रमा
  • भगवान गणेश और हनुमान जी की तीन परिक्रमा
  • भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा
  • सूर्य देव की चार परिक्रमा
  • तुलसी की कम से कम 3 या 108 परिक्रमा
  • पीपल के पेड़ की कम से कम 5 या 108 परिक्रमा
  • शनिदेव की सात परिक्रमा

•जिन देवताओं की परिक्रमा का विधान पता नहीं हो, उनकी तीन परिक्रमा कर सकते हैं

परिक्रमा के नियम (Parikrama Ke Niyam)

परिक्रमा करने के कुछ नियम होते हैं या यूँ कहे कि परिक्रमा करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता हैं तभी हमे उसका संपूर्ण लाभ मिलता हैं। आइए जानते हैं:

परिक्रमा
  • सर्वप्रथम और सबसे महत्वपूर्ण नियम तो यहीं हैं कि परिक्रमा हमेशा दक्षिणावर्ती दिशा में ही की जानी चाहिए, वामवर्ती दिशा में नही।
  • एक बार परिक्रमा शुरू करने के बाद उसे आधी-अधूरी नही छोड़नी चाहिए, उसे पूर्ण करना चाहिए।
  • परिक्रमा को सामान्य गति से करना चाहिए अर्थात परिक्रमा करते समय ज्यादा तेज या धीमे ना चले।
  • परिक्रमा करते समय साथ वालों से बात करने को वर्जित माना गया हैं।
  • परिक्रमा करते समय तेज आवाज़ में भी नही बोलना चाहिए, धीमी आवाज़ में मंत्रोच्चार करे।
  • परिक्रमा करते समय मन में अच्छे विचार रखने चाहिए, हाथ जोड़कर रखने चाहिए व मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।
  • परिक्रमा में यदि ईश्वर का निरंतर स्मरण किया जाए और किसी प्रकार के सांसारिक विचार मन में न लाये जाये तो इसका सर्वोतम लाभ मिलता हैं।
  • परिक्रमा वही पर समाप्त करनी चाहिए, जहाँ पर शुरू की थी अर्थात मुख्य गर्भगृह के सामने।
  • परिक्रमा पूर्ण करने के पश्चात ईश्वर को दंडवत प्रणाम करने से ज्यादा लाभ मिलता हैं।
  • एक से ज्यादा बार परिक्रमा करते समय हर बार मुख्य गर्भगृह के सामने रखी देवप्रतिमा को प्रणाम करना ना भूले।
  • परिक्रमा करने के पश्चात ईश्वर को पीठ नही दिखानी चाहिए। इसलिए आप उल्टे पैर मंदिर से बाहर निकले।

परिक्रमा के समय पढ़ें ये मंत्र-:

यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।”

मंत्र का हिंदी अर्थ-:

“हे भगवान! जाने अनजाने में मेरे द्वारा किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप इस प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। भगवान मुझे अच्छी बुद्धि प्रदान करें।”

अपने गुरु मंत्र व ईष्ट मंत्र या नाम जप करते हुए भी परिक्रमा कर सकते हैं।

परिक्रमा करने का लाभ

परिक्रमा करने से हमारे स्वास्थ्य को भी लाभ मिलता है। यूं तो हम मानते ही हैं कि प्रत्येक धार्मिक स्थल का वातावरण काफी सुखद होता है, लेकिन इसे हम मात्र श्रद्धा का नाम देते हैं। किंतु वैज्ञानिकों ने इस बात को काफी विस्तार से समझा एवं समझाया भी है।

वैज्ञानिकों के अनुसार प्रत्येक धार्मिक स्थल पर कुछ विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है। यह ऊर्जा मंत्रों एवं धार्मिक उपदेशों के उच्चारण से पैदा होती है। यही कारण है कि किसी भी धार्मिक स्थल पर जाकर मानसिक शांति मिलती है।

परिक्रमा से मिलने वाला फायदा भी इसी तथ्य से जुड़ा है। जो भी व्यक्ति किसी धार्मिक स्थान की परिक्रमा करता है, उसे वहां मौजूद सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

यह ऊर्जा हमें जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती है। इस तरह ना केवल आध्यात्मिक वरन् मनुष्य के शरीर को भी वैज्ञानिक रूप से लाभ देती है परिक्रमा।

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परिक्रमा का उद्देश्य क्या है?

परिक्रमा करने से व्यक्ति के तमाम तरह के पाप दूर होते हैं, और जीवन से समस्याओं का साया भी दूर होने लगता है।

हम प्रदक्षिणा क्यों करते हैं?

प्रदक्षिणा का अर्थ हुआ दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए देवी-देवता की उपासना करना। इसके पीछे का तथ्य ये है कि दैवीय शक्ति की आभा मंडल की गति अर्थात सकारात्मक ऊर्जा हमेशा दक्षिणावर्ती होती है।

परिक्रमा किस दिशा में करनी चाहिए?

परिक्रमा दक्षिणावर्त दिशा में यानि दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए करनी चाहिए।

परिक्रमा मंत्र क्या है?

परिक्रमा के समय पढ़ें ये मंत्र-:
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।”

by Tripti Srivastava
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