पितृ दोष के लक्षण और मुक्ति पाने के अचूक उपाय
दोस्तों , कई लोग पितृदोष के बारे में नहीं जानते कि आखिर ये पितृदोष क्या है? क्यों होता है पितृदोष? कुंडली में किन योगों के होने पर पितृ-दोष होता है? आज की इस पोस्ट में हम पितृ दोष के लक्षण और मुक्ति पाने के अचूक उपाय के बारे में विस्तार से जानेंगे।
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, इस बार पितृ पक्ष 18 सितंबर 2024 से शुरू होने जा रहा है। वहीं समापन 2 अक्टूबर 2024 को होगा। पितृपक्ष के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण-श्राद्ध कर्म, पिंडदान किया जाता है। ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। वे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
ज्योतिष में पितृदोष का बहुत महत्व माना जाता है। पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है। ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है। जब हमारे पूर्वज महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं, ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं। ना ही हमारे परिवार के लोग अपने ऋण चुकाने का प्रयास करते हैं। इन कारणों से ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं, जिसे “पितृ- दोष” कहा जाता है।
पितृ दोष क्यों होता है ?
किसी भी व्यक्ति के अपने परिवार में उसके जन्म से पूर्व यदि किसी पूर्वज की मरणोपरांत अंत्येष्टि क्रिया शास्त्र सम्मत विधि विधान से न की गयी हो। अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद विधि विधान से अंतिम संस्कार न किया जाए या किसी की अकाल मृत्यु हो जाए तो व्यक्ति से जुड़े परिवार की कई पीढ़ियों को तक पितृदोष का दंश झेलना पड़ता है। परिवार में पूर्वजों के निमित्त कोई भी कार्य न किया जाता हो तो उसकी कुंडली में पितृ दोष अवश्य मिलता है। जिसे प्रेतबाधा भी कहते हैं।
पितृ दोष के कारण
पितृ दोष होने के बहुत से कारण हो सकते हैं , जैसे :
- परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण।
- पितर को जल नहीं देने के कारण।
- पूर्व जन्म में अगर माता-पिता की अवहेलना की गई हो।
- जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो।
- अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण ।
- श्राद्ध आदि कर्म सही तरीके से ना करने से ।
- दायित्वों का ठीक तरीके से पालन न किया गया हो।
- कुल देवता, देवी, इत्यादि का अपमान करना।
- नाग की हत्या करना, कराना या उसकी मृत्यु का कारण बनना।
- पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर।
इन कारणों से पितर दुखी और क्रुद्ध होकर अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं। इसका असर व्यक्ति को जीवन पर दिखने लगता है। मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है। यह कष्ट पितृदोष के रूप में जातक की कुंडली में दिखता है।
पितृ दोष के लक्षण-
इस दोष में कुछ खास तरह की समस्याएं या लक्षण अधिकतर मनुष्य में देखने को मिलते हैं। लक्षणों के आधार पर पितृ दोष होने का अनुमान लगाया जा सकता है। इस कारण से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है। उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता। यहां आपको कुछ ऐसे ही लक्षण बताने जा रहे हैं, जिससे आप पहचान सकते हैं कि कुंडली में पितृ दोष है या नहीं।
- शुभ कार्य में अड़चन।
- मानसिक अवसाद।
- संपन्नता होते हुए भी घर में हमेशा तनाव और कलेश रहना।
- परिवार के लोगों में मनमुटाव बढ़ता जाता है।
- पूर्वजों का स्वप्न में बार बार आना।
- घर के किसी एक सदस्य का कुंवारा रह जाना।
- संतान प्राप्ति ना होना।
- मकान या प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में दिक्कत।
- घर की दीवारों में सीलन, टूट-फूट रहती है।
- बरकत ना होना।
- परिश्रम के अनुसार फल न मिलना।
- विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं।
- व्यापार में नुक्सान।
- कैरिअर में समस्याएं।
- नौकरी का ना मिलना या बार-बार नौकरी छूटना।
- गर्भपात या गर्भधारण में बहुत ज्यादा समस्या।
- मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना।
पितृपक्ष 2024 की तिथियां – Pitru Paksha 2024 Shradh Dates
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक 18 सितंबर 2024 से पितृ पक्ष शुरू हो रहे हैं और 2 अक्टूबर 2024 तक चलेंगे। इसे श्राद्ध पर्व भी कहते हैं। इस दौरान पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने की परंपरा है।
पूर्णिमा श्राद्ध – 17 सितंबर
प्रतिपदा श्राद्ध – 18 सितंबर
द्वितीया श्राद्ध – 19 सितंबर
तृतीया श्राद्ध – 20 सितंबर
चतुर्थी श्राद्ध – 21 सितंबर
पंचमी श्राद्ध – 22 सितंबर
षष्ठी श्राद्ध – 23 सितंबर
सप्तमी श्राद्ध – 24 सितंबर
अष्टमी श्राद्ध – 25 सितंबर
नवमी श्राद्ध – 26 सितंबर
दशमी श्राद्ध – 27 सितंबर
एकादशी श्राद्ध- 28 सितंबर
द्वादशी श्राद्ध- 29 सितंबर
त्रयोदशी श्राद्ध – 30 सितंबर
चतुर्दशी श्राद्ध- 24 सितंबर
अमावस्या का श्राद्ध- 2 अक्टूबर
पितृ दोष के कारण होने वाली समस्याएँ
यह एक ऐसा दोष है, जिसके कारण व्यक्ति अकारण और बेवजह की समस्याओं और परेशानियों से घिरा रहता है। परिवार के सिर्फ एक सदस्य की कुंडली में भी पितृ दोष होने पर उसका प्रभाव अन्य सदस्यों पर भी पड़ता है। इससे पीड़ित व्यक्ति का जीवन अत्यंत कष्टमय हो जाता है।
पितरों के नाराज होने संकेत
पितरों के नाराज होने से जीवन में कई तरह की जीवन में कई तरह की बाधाएं आती हैं। पितरों की रूठने के कारण ही कार्य- व्यापार में नित आकस्मिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अकारण तनाव, करियर में समस्याएं, मेहनत के अनुसार फल न मिलना, युवक-युवती के विवाह में बाधा आती है।
पितरों की नाराजगी के कारण ही संतान के कारण कष्ट या संतान न होना का कारण बनता है। पूर्वजों का सपने में दिखना भी पितरों की नाराजगी का संकेत है।
पितृ दोष के लक्षण और मुक्ति पाने के उपाय
यदि किसी को पितृदोष है तो उसकी तरक्की रुकी रहती है। समय पर विवाह नहीं होता है। कई कार्यों में रोड़े आते रहते हैं। गृह कलह बढ़ जाती है। रुपया पैसा होते हुए भी शांति और सुकून नहीं मिलता है। क्रोध आता रहता है, परिवार में बीमारी लगी रहती है, आत्मबल में कमी रहती है आदि कई कारण या लक्षण बताए जाते हैं।
पितृ दोष के प्रभाव
इसके प्रभाव के कारण धन हानि, अनावश्यक के विवाद, परिवार में क्लेश, शुभ कार्यों में विलम्ब, संतान हीनता, अचानक दुर्घटना का योग, नौकरी-व्यापार में असफलता आदि समस्याओं की भरमार रहती है। इसका प्रभाव धीरे-धीरे पूरे परिवार पर होने लगता है और यह परिवार को दीमक की तरह धीरे-धीरे नष्ट कर देता है।
कुंडली मे पितृ दोष कैसे पहचानें?
प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में पितृदोष सबसे बड़ा दोष माना गया है। आपकी कुंडली में चाहे कितने भी अच्छे योग क्यों ना हों, यदि आपकी कुंडली में पितृ दोष है तो जीवन अत्यंत संघर्षमय हो जायेगा।
राहु-केतु और शनि को अत्यंत ही पाप ग्रह माना जाता है। इन्ही के प्रभाव में यदि चन्द्रमा, सूर्य या गुरु आएँ तो पितृ दोष का सृजन हो जाता है।
- अगर कुंडली के लग्न, द्वितीय, पंचम, अष्टम या द्वादश भाव में राहु हो।
- राहु, केतु या शनि से चन्द्रमा की युति (माता या माता के पक्ष के कारण श्राप) ।
- शनि राहु या केतु से सूर्य की युति (पिता या पिता के पक्ष के कारण श्राप) ।
- मंगल की राहु या केतु से युति (भाई के कारण श्राप) ।
- गुरु की राहु या केतु से युति (गुरु या संत का श्राप) ।
- राहु या केतु से शुक्र की युति (ब्राह्मण या किसी विद्वान पुरुष का श्राप) ।
- चन्द्रमा का राहु-केतु या शनि के साथ अष्टम में बैठना भयानक प्रेत बाधा को दर्शाता है।
- अष्टमेश का लग्न में और लग्नेश का अष्टम में बैठना भी अत्यंत घातक होता है।
- राहु-केतु-शनि या मंगल का पंचम में बैठना भी पितृदोष का परिचायक होता है।
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कुंडली में है पितृ दोष तो आपके लिए बहुत खास है श्राद्ध पक्ष
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अगर किसी की जन्म कुंडली में पितृ दोष हो तो उसके लिए श्राद्ध या पितृ पक्ष (Pitru paksha) बहुत खास होते हैं, क्योंकि इस दौरान कुछ विशेष उपाय करने से इस दोष के अशुभ फलों से कुछ हद तक बचा जा सकता है।
मान्यता है कि पूर्वज श्राद्ध पक्ष के दौरान अपने परिवारों में आते हैं और इस दौरान परिजनों द्वारा उनकी मुक्ति के लिए जो कर्म किया जाता है उसे श्राद्ध कहा जाता है। श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान, तर्पण और दान आदि किया जाता है।
पितृपक्ष (श्राद्ध पक्ष) में पितृदोष के निवारण के उपाय
- श्राद्ध पक्ष (Shradh Paksha 2024) में रोज पीपल पर दूध और जल मिलाकर अर्पित करें। शाम को पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इस उपाय से भी पितृ प्रसन्न होते हैं।
- पितृ पक्ष में तांबे के लोटे में काला तिल, जौ और लाल फूल मिला कर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर पितरों को जल चढ़ाएं।
- Shradh Paksha में पितरों को याद कर गाय को चारा खिला दे। इससे भी पितृ प्रसन्न हो जाते हैं।
- पितृ दोष (Pitru Dosh) से मुक्ति पाने के लिए पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मणों को या जरूरतमंदों को भोजन जरूर करवाना चाहिए और उन्हें सम्मान पूर्वक दान-दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। खाने में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल न करें।
- पूर्णिमा से प्रारंभ होकर अमावस्या तक चलने वाले पितृ पक्ष में 16 दिन तक गाय को रोटी खिलाएं।
- पितृ पक्ष में प्रतिदिन पीपल की १०८ परिक्रमा अवश्य करें।
- पितृ दोष को दूर करने के लिए रोज पीपल में जल दें. पीपल को जल देने के बाद काले रंग के कुत्ते को रोटी खिलाएं. ऐसा करना पितृ दोष को समाप्त करता है.
- घर में भगवत गीता पाठ विशेषकर 11वें अध्याय का पाठ नित्य करें।
- शनिवार को दूध में गुड़ मिलाकर पीपल की जड़ में डालें. इसके अलावा ‘शं शनैश्चराय नमः’ मंत्र का कम से कम 27 बार जाप करें। इस उपाय से शनि दोष धीरे-धीरे खत्म हो जाता है. साथ ही पितृ दोष का प्रभाव कम होने लगता है।
श्राद्ध के दौरान न करें ये काम
पितृ पक्ष में कुछ कामों को वर्जित बताया गया है. पितृ पक्ष में ये काम नहीं करना चाहिए, वरना भारी नुकसान झेलना पड़ता है।
– श्राद्ध पक्ष के दौरान किसी बुजुर्ग का अपमान न करें. किसी पशु का न सताएं. झूठ न बोलें।
– पितृ पक्ष के दौरान नए कपड़ों, सोने-चांदी आदि न खरीदें. ना ही नया काम करें।
– श्राद्ध कर्म के दौरान चमड़े की किसी वस्तु का उपयोग न करें. ना ही चमड़े के बेल्ट आदि पहनकर श्राद्ध कर्म करें।
– पूजा में लोहे के बर्तनों का उपयोग न करें।
– कभी भी श्राद्ध कर्म शाम के समय में नहीं करें।
– श्राद्ध कर्म करने वाला व्यक्ति 15 दिन के दौरान नाखून-बाल न काटे।
– पितृ पक्ष या श्राद्ध पर्व के दौरान कोई भी शुभ काम न करे। इस दौरान किए गए शुभ काम भी अशुभ फल देते हैं। ये समय अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट कराने का होता है इसलिए इन 15 दिनों में कोई खुशी या जश्न नहीं मनाना चाहिए।
पितृ पक्ष में भूलकर भी न करें इन चीजों का सेवन
मसूर की दाल का न खाएं
श्राद्ध के दौरान मसूर की दाल सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना जाता है। इसके साथ ही पितृ पक्ष में दाल, चावल, गेहूं जैसे कच्चे अनाज का भी सेवन नहीं करना चाहिए। इस अनाज को पकाकर खा सकते हैं लेकिन कच्चा अनाज न खुद खाएं और न ही पितरों को अर्पित करें।
लहसुन-प्याज के सेवन का सेवन न करें
पितृ पक्ष में सादा जीवन जीना चाहिए। सनातन धर्म में लहसुन और प्याज को तामसिक भोजन माना गया है। पितृ पक्ष के दौरान भूलकर भी लहसुन-प्याज, नॉनवेज का सेवन न करें, ना ही शराब पिएं।
जमीन में उगने वाली सब्जियां न खाएं
पितृ पक्ष में भूलकर भी जमीन के अंदर उगने वाली आलू, मूली, अरबी जैसी सब्जियां नहीं खानी चाहिए। इन सब्जियों को न तो पितरों को भोग लगाएं और न ही ब्राह्मणों को इनका सेवन कराएं. मान्यता है कि ऐसा करने से पितर नाराज हो जाते हैं।
पितृपक्ष में चना खाना वर्जित है
पितृ पक्ष के दौरान चने का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए। पितरों को भी श्राद्ध में चने की दाल, चने और चने से बना सत्तू का अर्पण करना अशुभ माना जाता है. ऐसा करने से पितर रुष्ट हो जाते हैं।
इसके अलावा श्राद्ध के लिए बनाए गए भोजन में काली उड़द, काला जीरा, काला नमक, काली सरसों और कोई भी अशुद्ध या बासी खाद्य पदार्थ का प्रयोग न करें, वरना पितृ नाराज हो सकते हैं।
मृत्यु तिथि याद न हो तो किस दिन श्राद्ध करें
जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं। बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती ऐसी स्थिति में आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है।
पितृ-दोष की शांति के उपाय
यह हमारे पूर्वजों और कुल परिवार के लोगों से जुड़ा दोष है। जब तक इस दोष का निवारण नहीं कर लिया जाए, यह दोष खत्म नहीं होता है। यह दोष एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है। यानी यदि पिता की कुंडली में पितृदोष है और उसने इसकी शांति नहीं कराई है, तो संतान की कुंडली में भी यह दोष देखा जाता है। इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोष का निवारण करना बहुत आवश्यक है।
- प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ना।
- अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों के फोटो लगाकर उन पर हार चढ़ाकर सम्मानित करना चाहिए। प्रतिदिन उनके सम्मुख घी का दीपक जलाना चाहिए।
- पूर्वजों का स्मरण करते हुए ऊं पितराय नम: मंत्र का 21 बार प्रतिदिन जपा करें।
- अमावस्या के दिन चावल की खीर बनाकर उसमें रोटी चूर लें तथा इसे कौओं खिला दें। इस उपाय से घर के पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पितृ-दोष का निवारण कैसे करें?
- हर अमावस को अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर कच्चे दूध में गंगाजल, थोड़े काले तिल, चीनी, चावल, जल, पुष्पादि चढ़ाते हुए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का पाठ करे।
- अमावस्या के दिन किसी निर्धन को भोजन कराएं, खीर जरूर खिलाएं.
- ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार “ॐ घृणि सूर्याय नमः ” मंत्र का जाप करें.
- हर रोज पीपल पेड़ पर दूध-जल मिलाकर जल अर्पित करें।
- अमावस्या के दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दूध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा आदि किसी योग्य ब्राह्मण को दान करें.
- अमावस्या को घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृ दोष शांत होता है।
- ग्रहण के समय दान अवश्य करें.
- एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात एक माह तक लगातार किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय काल में एक शुद्ध घी का दीपक जलाएं.
- सवा किलो चावल लाकर रोज अपने ऊपर से एक मुट्ठी चावल सात बार उतारकर पीपल की जड़ में डाल दें। ऐसा लगातार 41 दिन करें।
- गजेंद्र मोक्ष स्त्रोत का पाठ कराएं.
पितृदोष निवारण के लिए विशेष उपाय (नारायणबलि-नागबलि)
शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि कर्म करने का विधान है। जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो। उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए।
नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। नारायणबलि और नागबलि दो अलग-अलग विधियां हैं। इनमें से कोई भी एक विधि करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एक साथ ही संपन्न करना पड़ता है।
नारायणबलि- नागबलि के लिए पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से समय निकलवाकर यह कर्म करवाना चाहिए। यह कर्म गंगा तट अथवा अन्य किसी नदी सरोवर के किनारे और महाराष्ट्र् में नासिक के समीप स्थित प्रमुख ज्योतिर्लिंग त्रयंबकेश्वर में भी संपन्न कराया जाता है। संपूर्ण पूजा तीन दिनों की होती है।
पितृ पक्ष श्राद्ध में क्यों है कौए का महत्व
पितृपक्ष में कौए का बेहद महत्व है। कौए को यम का प्रतीक माना जाता है। कौए के माध्यम से पितृ आपके पास आते हैं। अन्न ग्रहण करते हैं और आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध पक्ष में कौए को खाना खिलाना यानी अपने पूर्वजों को भोजन खिलाने के बराबर है। श्राद्ध पक्ष में कौए को अन्न खिला कर पितरों को तृप्त किया जाता है।
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार यदि पितृपक्ष में घर के आंगन में कौआ आकर बैठ जाएं तो यह बेहद शुभ होता है। पितृपक्ष में कौए को प्रतिदिन खाने को कुछ देना चाहिए। अगर कौआ दिया हुआ भोजन खा लें तो अत्यंत लाभकारी होता है। इसका मतलब है कि पितृ आपसे प्रसन्न हैं और आशीर्वाद देकर गए हैं।
पितृदोष का वास्तु से सम्बन्ध
घर में पितृ का स्थान दक्षिण और पश्चिम का कोना है यानी कि नैत्रत्य कोण है । घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह ईशान कोण से होता है और नकारात्मक उर्जा का प्रवाह नैत्रत्य कोण से होता है ।
जब जन्म कुंडली में पितृ दोष होता है, यानी कि राहु (जो की नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत्र है ) मजबूत होता है। ऐसी परिस्थिति में वह व्यक्ति जिस घर में रहता है उस घर के नैत्रत्य कोण में वास्तु दोष जरूर होता है ।
नैत्रत्य कोण के वास्तु दोष
- नैत्रत्य कोण में शौचालय का होना, डस्टबिन का होना, नाली का होना, दक्षिण पश्चिम में गंदगी होना (जो की राहु की नकारात्मक उर्जा को 100 गुना बढ़ा देता है )।
- दक्षिण पश्चिम में पृथ्वी की उर्जा होती है। अगर यहां पर पेड़ – पौधे रखे हों या दीवार का रंग हरा हो तो भी पृथ्वी की उर्जा समाप्त हो जाती है। जिससे भी यहाँ पर वास्तुदोष पैदा होते हैं ।
- घर में नैत्रत्य कोण रिश्ते का स्थान भी है। अगर यहां पर वास्तु दोष होता है तो वैवाहिक जीवन में बहुत सारी परेशानियां आती हैं । बिना किसी कारन के बार-बार झगड़े होते हैं ।
Conclusion
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FAQ :
कुंडली में पितृ दोष क्यों लगता है ?
श्राद्ध में क्या नही करना चाहिए ?
पितृ दोष निवारण मंत्र क्या है?
2. ऊं प्रथम पितृ नारायणाय नमः ।।
Madam meri beti ko pitra dosh h uska nivaran wo khud kare gi ya pita karege.
Very nice information