ये तन्हाइयां
ये तन्हाइयां हमेशा ही तेरा साथ निभाती हैं,
निःस्वार्थ भावना से तुझे गले से लगाती हैं।
परेशानियों में जब तेरी आँखें हैं डबडबाती,
ये तन्हाइयां तुम्हें अपने आगोश में ले लेतीं।
जब कभी तेरे अपनों ने तुझको ठुकराया,
तन्हाइयों ने आकर तुझे गले से लगाया।
जब भी तेरे अपनों ने तेरा साथ ना निभाया,
तन्हाइयों ने आकर अपना दामन बिछाया।
जब कभी किसी ने तेरा मनोबल गिराया,
तनहाइयों ने आकर तेरा ढाँढस बँधाया।
ज़िन्दगी के जिन मीठी यादों को तुमने खोया,
तनहाइयों ने वो यादें अपने पास है संजोया।
पर तनहाइयों से सबने सिर्फ स्वार्थ है निभाया,
खुशियों में कभी इसको साझेदार ना बनाया।
तन्हाइयां ही देती हैं तेरे ग़म में तुझको ‘तृप्ति‘,
न जाने क्यों तू चाहता है इन तनहाइयों से मुक्ति।
— तृप्ति श्रीवास्तव