औरत के दिल का मर्म – मेरी कलम से | Hindi Poem by Tripti Srivastava 7

औरत के दिल का मर्म – मेरी कलम से


कभी तो यारों उसका दिल भी, टटोल कर के देखो।
उसके दफ़्न जज्बातों को, कभी खोल कर तो देखो।।

स्वजनों के ज़ख्म पर जो, मरहम सदा लगाती।
पर खुद के जख्मों को कभी, जाहिर न होने देती।।

कभी तो यारों उसका दिल भी…..

अपने बच्चों के अरमानों को, वह पंख लगाती है।
अपने सपनों को ध्वस्त करके, उनके सपनों को पूरा करती है।।

कभी तो यारों उसका दिल भी…..

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औरत के दिल का मर्म
औरत के दिल का मर्म – Hindi Poem

पति की परेशानियों में, मनोबल बढ़ाती है जो।
खुद अपनी परेशानियों से, नज़रें चुराती है वो।।

कभी तो यारों उसका दिल भी…..

वो उस वख्त भी रोती थी जब, बच्चा खाता नही था खाना।
वो आज भी रोती है, जब वो बच्चा देता नही उसे खाना।।

कभी तो यारों उसका दिल भी…..

अपनों के कष्ट में रहती, सदा जिसकी है भागीदारी।
पर पास न कोई  होता, जब आती है उसकी बारी।।

कभी तो यारों उसका दिल भी…..

औरत के दिल का मर्म – मेरी कलम से

तन्हाइयों से करती है, जब भी वो मुलाकातें।
आँसू ही बोल देते हैं, जुबां की सारी बातें।।

कभी तो यारों उसका दिल भी…..

स्वजनों को ‘तृप्ति‘ देकर, अभिभूत होती है जो।
पर चाहतों से खुद के, अनभिज्ञ रहती है वो।।

कभी तो यारों उसका दिल भी, टटोल कर के देखो।
उसके दफ़्न जज्बातों को, कभी खोल कर तो देखो।।

                          —तृप्ति श्रीवास्तव
by Tripti Srivastava
मेरा नाम तृप्ति श्रीवास्तव है। मैं इस वेबसाइट की Verified Owner हूँ। मैं न्यूमरोलॉजिस्ट, ज्योतिषी और वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ हूँ। मैंने रिसर्च करके बहुत ही आसान शब्दों में जानकारी देने की कोशिश की है। मेरा मुख्य उद्देश्य लोगों को सच्ची सलाह और मार्गदर्शन से खुशी प्रदान करना है।

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