माँ एक बार तो आ जाओ ना | Hindi Poem by Tripti Srivastava – 9

माँ एक बार तो आ जाओ ना – Hindi Kavita

माँ एक बार तो आ जाओ ना
माँ एक बार तो आ जाओ ना

                                                               

माँ क्यों तुम मुझसे इतनी दूर चली गयी,

एक बार तो आ जाओ ना…

ढूढ़ती हैं मेरी निगाहें तुझे ही चारों ओर,

एक बार तोे हल्का सा एहसास करा जाओ ना।

एक बार तो आ जाओ ना…

तरसती हूँ मैं उन हाथों की कोमल सी एक छुअन के लिए,

जो मेरे जख्मों पर कभी मरहम लगाया करते थे।

तरसती हूँ मैं तेरी शीतल सी हर उस फूँक के लिए,

जो मेरी उँगलियों के जल जाने पर ठंडक पहुंचाया करते थे।

माँ अब नही है कोई मेरे जख्मों पर मरहम लगाने वाला,

माँ अब नही है कोई मेरी जली उंगलियों पर फूँक मारने वाला।

एक बार तो आ जाओ ना…

Hindi Poem on Maa by Tripti Srivastava


माँ तरसती हूँ मैं तेरी उस मखमली सी गोद के लिए,

जिनमे सिर रखकर मुझे सुकून मिला करता था।

तरसती हूँ मैं तेरे आँचल के उस छोटे से टुकड़े के लिए,

जो मेरी गीली आँखों की नमी को सोख लिया करते थे।

माँ अब नही है कोई मुझको वो सुकून देने वाला,

माँ अब नही है कोई मेरी आँखों की उस नमी को देखने वाला।

एक बार तो आ जाओ ना…

माँ तरसती हूँ मैं तेरी प्यारी सी उस हर एक डाँट के लिए,

जो मुझे थोड़ा और खाने को मजबूर किया करते थे।

तरसती हूँ मैं तेरे उस प्यार के समुन्दर को,

जो मेरे जज्बातों के सैलाब समां लिया करते थे।

माँ अब नही है कोई मेरे खाने की परवाह करने  वाला,

माँ अब नही है कोई मेरे जज्बातों की कद्र करने वाला।

एक बार तो आ जाओ ना…

माँ एक बार तो आ जाओ ना
माँ एक बार तो आ जाओ ना

माँ तरसती हूँ मैं तेरी उन प्यारी सी नज़रों के लिए,

जो मेरी इच्छाओं को चेहरे से ही पढ़ लेती थीं।

तरसती हूँ मैं तेरे प्यारे से उस उपहार के लिए,

जो मेरी हर खुशियों पर मुझे तुझसे मिला करते थे।

माँ अब नही है कोई मेरी इच्छाओं का सम्मान करने वाला,

माँ अब नही है कोई मेरी खुशियों को महसूस करने वाला।

एक बार तो आ जाओ ना…

तरसती हूँ मैं तेरे उस प्यार भरे जज़्बात के लिए,

जो मेरी हर गलतियों को नकार दिया करते थे।

तरसती हूँ मैं अपने उस गुमाँ और सम्मान के लिए,

जो मैं तेरे सानिध्य में महसूस किया करती थी।

माँ अब तो किसी और की गलती की ज़िम्मेदार मैं ही होती हूँ।

माँ अब तो बिन गुमाँ और सम्मान के मैं जीती हूँ।

एक बार तो आ जाओ ना…

जानती हूँ माँ कि तू मजबूर है,

चाह कर भी कुछ ना कर पायेगी।

पर मैं भी तो मजबूर हूँ ना माँ,

तेरी यादों की कश्ती में बैठकर ,

तुझसे बातें किये बिना

मुझे ‘तृप्ति’ भी तो ना मिल पाएगी।

एक बार तो आ जाओ ना…

 — तृप्ति श्रीवास्तव

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by Tripti Srivastava
मेरा नाम तृप्ति श्रीवास्तव है। मैं इस वेबसाइट की Verified Owner हूँ। मैं न्यूमरोलॉजिस्ट, ज्योतिषी और वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ हूँ। मैंने रिसर्च करके बहुत ही आसान शब्दों में जानकारी देने की कोशिश की है। मेरा मुख्य उद्देश्य लोगों को सच्ची सलाह और मार्गदर्शन से खुशी प्रदान करना है।

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