होलाष्टक 2024 कब से है?
इस साल होलिका दहन 24 मार्च को होगा और रंग वाली होली 25 मार्च को खेली जाएगी। होलिका दहन से ठीक 8 दिन पहले यानी 16 मार्च से होलाष्टक शुरू हो रहा है। होलाष्टक में शुभ व मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।
क्यों मनाया जाता है होलाष्टक ?👇
शास्त्रों के अनुसार, होली से आठ दिन पहले यानी अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक विष्णु भक्त प्रह्लाद को काफी यातनाएं दी गई थीं। हिरण्यकश्यप ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को ही भक्त प्रह्लाद को बंदी बनाया था।
इस दौरान प्रह्लाद को जान से मारने के लिए तरह-तरह की यातनाएं दी गई थीं। यातनाओं से भरे उन आठ दिनों को ही अशुभ मानने की परंपरा बन गई।
होलाष्टक का वैज्ञानिक आधार👇
मौसम में बदलाव के कारण मन अशांत और उदास रहता है। इस मन से किए हुए कार्यों के परिणाम शुभ नहीं होते हैं। इसलिए इसमें कुछ शुभ-मांगलिक कार्य बंद रहते हैं। जैसे ही होलाष्टक समाप्त होता है, रंग खेलकर हम आनंद में डूबने का प्रयास करते हैं और शुभ व मांगलिक कार्य पुन: आरंभ हो जाते हैं।
होलाष्टक में भूल से भी न करें ये काम👇
👉 कहा जाता है कि होलाष्टक में कभी भी विवाह, मुंडन, नामकरण, सगाई समेत 16 संस्कार नहीं करने चाहिए।
👉 इस दौरान नए मकान का निर्माण कार्य प्रारंभ न कराएं और न ही गृह प्रवेश करें।
👉 होलाष्टक के समय में नए मकान, वाहन, प्लॉट या दूसरे प्रॉपर्टी की खरीदारी से बचना चाहिए।
👉 इन दिनों में कोई भी यज्ञ, हवन आदि कार्यक्रम नहीं करना चाहिए।आप चाहें तो ये कार्य होली के बाद या उससे पहले कर सकते हैं।
👉 साथ ही इस दौरान नौकरी परिवर्तन से बचना चाहिए। यदि नई जॉब ज्वाइन करनी है, तो उसे होलाष्टक के पहले या बाद में करें।
👉 इन दिनों कोई भी नया बिजनेस शुरू करने से बचना चाहिए, क्योंकि नए बिजनेस की शुरुआत के लिए ये समय अच्छा नहीं माना जाता है।
👉 वाहन या सोना-चांदी जैसी कीमती चीजों की खरीदारी नहीं करे। होलाष्टक का समय इन चीजों की खरीद के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। इस समय आपको किसी भी तरह के निवेश से बचना चाहिए। होलाष्ट के समय लंबी दूरी की यात्रा नहीं करनी चाहिए।
होलाष्टक में क्यों नहीं किए जाते शुभ कार्य?👇
पौराणिक मान्यता के अनुसार कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी थी। इससे रुष्ट होकर शिव जी ने प्रेम के देवता कामदेव को फाल्गुन माह की अष्टमी तिथि के दिन ही भस्म कर दिया था।
इसके बाद कामदेव की पत्नी रति ने शिव की आराधना की और कामदेव को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की, जिसके बाद शिवजी ने रति की प्रार्थना स्वीकार कर ली। महादेव के इस निर्णय के बाद कामदेव फिर से जीवित हो गए और होलाष्टक का समापन हो गया। साथ ही लोगों ने इसकी खुशी में जश्न मनाया। तभी से होली के पर्व की भी शुरुआत हुई।
होलाष्टक के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए राशि अनुसार उपाय 👇
शास्त्रों के अनुसार इन दिनों में किए गए व्रत और किए गए दान से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है और ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।
मेष- हनुमान उपासना करे
वृष- लक्ष्मी पूजा करे
मिथुन- दुर्गा जी की पूजा करे
कर्क- शिव उपासना करे
सिंह- सूर्य उपासना करे, आदित्यहृदय स्त्रोत पढ़े
कन्या- दुर्गा जी की उपासना करे
तुला- घर की साफ-सफाई करे, छोटी कन्याओं को भोजन कराए
वृश्चिक- हनुमान उपासना करे
धनु- विष्णु जी की पूजा करे
मकर एंव कुंभ- शनि पूजा करे
मीन- मंदिर में पीला वस्तु दान करे
साथ ही सभी राशि वाले डेली सूर्य को अर्घ दे, आदित्य हृदय स्तोत्र, राम-रक्षा स्तोत्र, विष्णुसहस्रनाम, गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करे।
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