शीतला अष्टमी का त्योहार (बसौड़ा)
भारतीय परंपराओं में शीतला अष्टमी का त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है। इस त्योहार को मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। इसके अलावा भी देश के कई हिस्सों में इस त्योहार को मनाया जाता है।
शीतला अष्टमी को बासोड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं कि शीतला माता की पूजा करने से चिकन पॉक्स, स्माल पॉक्स, मीजिल्स सहित कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा शीतला माता की सच्चे मन से आराधना करने से मनुष्य को रोगों और कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। शीतला अष्टमी के दिन माता रानी की पूजा करने से क्या-क्या लाभ मिलता है।
शीतला अष्टमी का त्योहार (बसौड़ा) कब है
होली के एक सप्ताह बाद अष्टमी तिथि को आने वाला शीतला अष्टमी का पर्व पूरे उतरी भारत में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। शीतला अष्टमी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है।
शीतला अष्टमी व्रत इस सााल 2 अप्रैल को होगा। 2 अप्रैल को ही बसौड़ा पर्व मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यह त्योहार मनाया जाता है।
शीतला अष्टमी का त्योहार होली से ठीक आठ दिन बाद आता है। इसमें शीतला माता की पूजा की जाती है।
कौन हैं शीतला माता
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शीतला माता ठंडकता प्रदान करती हैं। इस दिन मां शीतला का पूजन करने से कई तरह के दुष्प्रभावों से भक्तों को मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि माता शीतला का व्रत रखने से कई तरह के रोग दूर होते हैं। इसके साथ ही लोग पूरे साल चर्म रोग व चेचक जैसी बीमारियों से दूर रहते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शीतला माता की पूजा करने एवं व्रत रखने से चिकन पॉक्स यानी माता, खसरा, फोड़े, नेत्र रोग नहीं होते है। माता इन रोगों से रक्षा करती है। माता शीतला को माँ भगवती का ही रूप माना जाता है।
शीतला माता का भोग
अष्टमी के दिन महिलाएं सुबह ठण्डे जल से स्नान करके शीतला माता की पूजा करती है और पूर्व रात्रि को बनाया गया बासी भोजन (दही, रबड़ी, कड़ी चावल, हलवा, पूरी, गुलगुले) का भोग माता के लगाया जाता है।
शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला को बासी ठंडे खाने का भोग लगाते हैं, जिसे बसौड़ा कहा जाता है। इस दिन बासी खाना प्रसाद के तौर पर खाया जाता है।
माता शीतला को क्यों चढ़ता है बासी भोग?
शीतला माता की पूजा के दौरान बासी भोग लगाया जाता है। इसका कारण यह है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। इसीलिए एक दिन पहले ही भोजन बनाकर तैयार कर लिया जाता है और दूसरे दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर शीतला माता की पूजा करती है।
इसके बाद मां को बासी भोजन यानी शीतला सप्तमी के दिन बनाए भोजन का भोग लगाया जाता है और घर के सभी सदस्य भी बासी भोजन ही खाते हैं। ऐसी मान्यताएं हैं कि शीतला माता की पूजा के दिन ताजे खाने का सेवन और गर्म पानी से स्नान नहीं करना चाहिए।
अष्टमी के दिन ठंडा भोजन क्यों खाते हैं?
ठण्डा भोजन खाने के पीछे भी एक धार्मिक मान्यता भी है कि माता शीतला को शीतल, ठण्डा व्यंजन और जल पसन्द है। इसलिए माता को ठण्डा (बासी) व्यंजन का ही भोग लगाया जाता है।
परिवार के सभी सदस्य भी ठण्डे पानी से स्नान करते है और रात में बनाया हुआ #बासी भोजन ही करते हैं। इससे माता शीतला प्रसन्न होती है।
यह ऋतु का अंतिम दिन होता है। ऋतु परिवर्तन से मानव शरीर में विभिन्न प्रकार के विकार और रोग होने स्वभाविक है। इन विकारों को दूर करने एवं इनसे रक्षा करने के लिए माता शीतला का व्रत और पूजन किया जाता है। माता शीतला इन विकारों से रक्षा करती है।
वहीं वैज्ञानिक तथ्य ये भी है कि इस दिन के बाद से सर्दी की विदाई मानी जाती है। अतः इस दिन अंतिम बार ठण्डा भोजन ग्रहण करने के बाद आगे ठण्डा बासी भोजन खाना गर्मी में हानिकारक होता है। क्योंकि गर्मी में वो भोजन खराब हो जाता है।
शीतला अष्टमी का महत्व
शीतला माता की पूजा को बासोड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह पूजा होली के बाद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। आमतौर पर यह होली के आठ दिनों के बाद पड़ती है, लेकिन कई लोग इसे होली के बाद पहले सोमवार या शुक्रवार को मनाते हैं। बासोड़ा रिवाज के अनुसार इस दिन खाना पकाने के लिए आग नहीं जलाते हैं।
शीतला अष्टमी की तिथि और मुहूर्त
शीतला अष्टमी 2024 : मंगलवार, 2 अप्रैल 2024
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त : प्रातः 06:19 बजे से सायं 06:32 बजे तक
कुल अवधि : 12 घंटे 13 मिनट
शीतला सप्तमी : सोमवार, 1 अप्रैल 2024
अष्टमी तिथि प्रारम्भ : 01 अप्रैल 2024 को रात्रि 09:09 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त : 02 अप्रैल 2024 को रात्रि 08:08 बजे
कैसे करें माता शीतला की पूजा
बासोड़ा से एक दिन पहले शाम को नहा-धोकर के शुद्ध पवित्र भोजन बनाएं। मीठे पूवे, पूड़ी, मीठे चावल, दही आदि। दूसरे दिन सुबह सबसे पहले उठकर नहा धोकर नये वस्त्र पहन कर मां शीतला की पूजा के लिए दो थालियां सजाएं।
एक थाली में जो भोजन बनाया था उसे रखें। वहीं दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, सिक्का, मेहंदी रखें और ठंडे पानी से भरा लोटा रखें।
घर के मंदिर में शीतला माता की पूजा करके दीपक जलाकर रख दें और थाली में रखा भोग चढ़ाए।
इसके बाद मंदिर में जाएं। मंदिर में पहले माता को जल चढ़ाकर रोली और हल्दी का टीका करें। आटे के दीपक को बिना जलाए माता को अर्पित करें। इसके अलावा नीम के पेड़ पर जल चढ़ाएं।
अंत में वापस जल चढ़ाएं और थोड़ा जल बचाकर उसे घर के सभी सदस्यों को आंखों पर लगाने को दें। फिर घर आकर सभी प्रसाद ग्रहण करें।
शीतला अष्टमी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार वृद्ध महिला ने अपनी दो बहुओं के साथ शीतला माता का व्रत किया। उन सभी को अष्टमी के दिन बासी खाना खाना था। इसके लिए उन्होंने सप्तमी को ही भोजन बनाकर रख लिया था। लेकिन, बहुओं को बासी भोजन नहीं करना था। क्योंकि उन्हें कुछ समय पहले ही संतान हुई थी। उन्हें बासी भोजन करने पर बीमार होने का डर था। उन्हें डर था कि अगर ऐसा हुआ तो उनकी संतान भी बीमार हो जाएगी।
दोनों ने बासी भोजन ग्रहण किए बिना अपनी सास के साथ माता की पूजा की। उन्होंने पशुओं के लिये बनाए गए भोजन के साथ ही अपने लिये भी ताजा भोजन बना लिया और ताजा भोजन ग्रहण किया। जब सास ने उन दोनों से बासी भोजन करने को कहा तो वह टाल मटोल करने लगी।
इसे देखकर माता रानी कुपित हो गई, और दोनों बहुओं के शिशुओं की मृत्यु हो गई। जब उनके ताजा भोजन करने की बात उनकी सास को पता चली, तो उसने दोनों को घर से बाहर निकाल दिया। दोनों अपने बच्चों के शवों को लिए रास्ते पर जा रही थी, तभी वे एक बरगद के पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुकी।
इसके नीचे पहले से ही ओरी और शीतला नामक दो बहनें बैठी थी। दोनों के बालों में विपुल प्रमाण में जूं थी, जिससे वह बहुत परेशान थी। दोनों बहुएं ओरी और शीतला के पास आकर बैठ गई। उन दोनों ने शीतला-ओरी के बालों से खूब सारी जूं निकाली।
जूंओं का नाश होने से ओरी और शीतला ने अपने मस्तक में शीतलता का अनुभव किया, जिससे खुश होकर कहा, ‘तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतल किया है, वैसे ही तुम्हारे पेट को शांति मिले। ‘दोनों बहुएं एक साथ बोली कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी-मारी भटक रही हैं, लेकिन शीतला माता के दर्शन हुए ही नहीं। शीतला ने कहा कि तुम दोनों पापिनी हो, दुष्ट हो, दुराचारिनी हो, तुम्हारा तो मुंह देखने भी योग्य नहीं है।
शीतला अष्टमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुम दोनों ने गरम भोजन कर लिया था। यह सुनते ही बहुओं ने शीतला माता को पहचान लिया। देवरानी-जेठानी ने दोनों ने माताओं का वंदन किया और गिड़गिड़ाते हुए कहा कि हम तो भोली-भाली हैं और अनजाने में हमने ताजा गरम खाना खा लिया था। हम आपके प्रभाव को नहीं जानती थी। आप हम दोनों को क्षमा करें। हम कभी भी ऐसी गलती नहीं दोहराएंगे।
उनके पश्चाताप भरे वचनों को सुनकर माताएं प्रसन्न हुईं और मृतक बालकों को जीवित कर दिया। इसके बाद दोनों बहुएं खुशी-खुशी गांव लौट आई। गांव के लोगों ने जाना कि दोनों बहुओं को शीतला माता के साक्षात दर्शन हुए, तो दोनों का धूम-धाम से स्वागत करके गांव में प्रवेश करवाया। तभी से माता शीतला के व्रत का और अधिक महत्व बढ़ गया है।
शीतला माता की #पौराणिक कथा
शीतला माता के संदर्भ में अनेक कथाएँ प्रचलित है एक कथा के अनुसार एक दिन माता ने सोचा कि धरती पर चल कर देखें की उसकी पूजा कौन-कौन करता है। माता एक बुढ़िया का रूप धारण कर एक गांव में गई।
माता जब गांव में जा रही थी तभी ऊपर से किसी ने चावल का उबला हुआ पानी डाल दिया। माता के पूरे शरीर पर छाले हो गए और पूरे शरीर में जलन होने लगी। माता दर्द में कराहते हुए गांव में सभी से सहायता माँगी। लेकिन किसी ने भी उनकी नहीं सुनी।
गांव में कुम्हार परिवार की एक महिला ने जब देखा कि एक बुढ़िया दर्द से कराह रही है तो उसने माता को बुलाकर घर पर बैठाया और बहुत सारा ठण्डा जल माता के ऊपर डाला। ठण्डे जल से माता को उन छालों की पीड़ा में काफी राहत महसूस हुई।
फिर कुम्हारिन महिला ने माता से कहा माता मेरे पास रात के दही और राबड़ी है, आप इनको खाये। रात के रखे दही और ज्वार की राबड़ी खा कर माता को शरीर में काफी ठंडक मिली। कुम्हारिन ने माता को कहा माता आपके बाल बिखरे है इनको गूथ देती हूँ।
वो जब बाल बनाने लगी तो बालों के नीचे छुपी तीसरी आँख देख कर डर कर भागने लगी। तभी माता ने कहा बेटी डरो मत में शीतला माता हूँ और मैं धरती पर ये देखने आई थी कि मेरी पूजा कौन करता है। फिर माता असली रूप में आ गई।
कुम्हारिन महिला शीतला माता को देख कर भाव विभोर हो गई। उसने माता से कहा माता मैं तो बहुत गरीब हूँ। आपको कहा बैठाऊँ। मेरे पास तो आसन भी नहीं है। माता ने मुस्कुराकर कुम्हारिन के गधे पर जाकर बैठ गई। और झाडू से कुम्हारिन के घर से सफाई कर डलिया में डाल कर उसकी गरीबी को बाहर फेंक दिया। माता ने कुम्हारिन की श्रद्धा भाव से खुश हो कर वर माँगने को कहा।
कुम्हारिन ने हाथ जोड़कर कहा माता आप वर देना चाहती है तो आप हमारे गांव में ही निवास करे और जो भी इंसान आपकी श्रद्धा भाव से सप्तमी और अष्टमी को पूजा करे और व्रत रखे तथा आपको ठण्डा व्यंजन का भोग लगाएं उसकी गरीबी भी ऐसे ही दूर करें। पूजा करने वाली महिला को अखंड शौभाग्य का आशीर्वाद दें।
माता शीतला ने कहा बेटी ऐसा ही होगा और कहा कि मेरी पूजा का मुख्य अधिकार कुम्हार को ही होगा। तभी से ये परंपरा चल रही है।
निष्कर्ष
मां दुर्गा के अनेक रूपों में से एक है शीतला माता। माता शीतला को आरोग्य और शीतलता की प्रदाता माना जाता है। माता शीतला की पूजा करने से सुख-समृद्धि का वरदान प्राप्त होता है। माता शीतला अपने अंदर छिपे रोग रूपी असुर का नाश करती है।
ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त माता शीतला की सच्चे मन से और पूरे विधि-विधान से उपासना करता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और सारे रोगों का निवारण मिल जाता है।
शीतला माता की जय
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