Tulsi Vivah Puja Vidhi, Samagri | देवउठनी एकादशी 2024, तुलसी विवाह मुहूर्त, पूजा विधि, सामग्री, मंत्र, कथा और आरती

Tulsi Vivah Puja Vidhi

कार्तिक महीने की देवउठनी एकादशी को पूरे चार महीने तक सोने के बाद जब भगवान विष्णु जागते हैं तो सबसे पहले तुलसी से विवाह करते हैं। तुलसी को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है।

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प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने शालिग्राम के अवतार में तुलसी से विवाह किया था। इसीलिए हर साल प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी पूजा की जाती है।

Tulsi Vivah Puja Vidhi
Tulsi Vivah Puja Vidhi

प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी जी और भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह करने से कन्यादान के तुल्य फल की प्राप्ति होती है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के विवाह का प्रतीकात्मक विवाह है। इस साल तुलसी विवाह 12 नवंबर 2024 को है.

आइए जानते हैं तुलसी विवाह के मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि के बारे में – Tulsi Vivah 2024

भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय हैं और केवल तुलसी दल अर्पित करके श्रीहरि को प्रसन्न किया जा सकता है। जो लोग तुलसी विवाह संपन्न कराते हैं, उनको वैवाहिक सुख मिलता है. वैसे तो तुलसी की पूजा पूरे साल करना अच्छा माना जाता है। लेकिन कार्तिक मास में तुलसी की पूजा करना परम फलदायी माना जाता है।

तुलसी पूजन का महत्व (Tulsi Vivah Puja Vidhi)


ऐसी मान्यता है कि देव उठनी एकादशी तिथि के दिन तुलसी पूजन और विवाह करने से समस्य मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। तुलसी जी विष्णु प्रिय हैं इसलिए उनका पूजन विष्णु जी को खुश करने का भी मार्ग है।

इस दिन पूजन करने से वैवाहिक जीवन के कष्टों से भी मुक्ति मिलती है और विष्णु जी की विशेष कृपा वैवाहिक जोड़े को प्राप्त होती है। इस प्रकार कार्तिक महीने की एकादशी तिथि के दिन विष्णु पूजन और तुलसी विवाह कराने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

कहते हैं कार्तिक मास में तुलसी की पूजा करने से अकाल मृत्यु की आशंका कम होती है। कार्तिक मास में एक महीने लगातार तुलसी के नीचे दीपक जलाने से परम पुण्य की प्राप्ति होती है और हमारे जीवन सुख शांति स्थापित होती है। तुलसी को विष्णु प्रिया माना जाता है इसलिए उनका पूजन अत्यंत लाभकारी होता है।

तुलसी के पौधे का महत्व

तुलसी की मंजरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है। मंजरी तोड़ते समय उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक माना गया है। तुलसी का एक-एक पत्ता तोड़ने के बजाय पत्तियों के साथ अग्रभाग को तोड़ना चाहिए. प्राय: पूजन में बासी फूल और पानी चढ़ाना निषेध है, पर तुलसीदल और गंगाजल कभी बासी नहीं होते।

तुलसी पूजन के मंत्र (Tulsi Vivah Puja Vidhi)

तुलसी जी की पूजा के दौरान उनके इन नाम मंत्रों का उच्चारण करें

ॐ सुभद्राय नमः
ॐ सुप्रभाय नमः

तुलसी के अग्रभाग तोड़ने का मंत्र

तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिया ।
चिनोमि वास्तु केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने।।
त्वदंगसंभवैः पत्रैः पूजयामि यथा हरिमृ ।
तथा कुरु पवित्रांगि! कलौ मलविनाशिनि ।।

तुलसी दल तोड़ने का मंत्र

मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।

तुलसी स्तुति का मंत्र

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

रोग मुक्ति का मंत्र

महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

तुलसी के पौधे में कब जल नहीं देना चाहिए

तुलसी के पौधे में जल देने को लेकर लोगों के बीच कई प्रकार के मत रहते हैं। हम आपको बता रहे हैं कि शास्त्रों के अनुसार तुलसी के पौधे में प्रत्येक रविवार को, एकादशी तिथियों पर और इसके अलावा सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के दिन तुलसी के पौधे में जल नहीं देना चाहिए।

इन सभी दिनों के अलावा सूर्यास्त के बाद तुलसी के पत्ते को नहीं तोड़ना चाहिए। ऐसा करने से मां लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं और आपके घर में कंगाली पांव पसारने लगती है।

देवउठनी एकादशी अथवा प्रबोधिनी एकादशी व्रत का महत्व

ऐसा माना जाता है कि देवउठनी एकादशी व्रत का फल एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के बराबर होता है। देव उठनी एकादशी का हिन्दुओ में विशेष महत्व है और इस दिन विष्णु पूजन और व्रत करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इस दिन निराहार व्रत किया जाता हैं दुसरे दिन द्वादशी को पूजा करके व्रत पूर्ण माना जाता हैं एवम भोजन ग्रहण किया जाता हैं.

देवउठनी एकादशी तिथि का शुभ मुहूर्त (Tulsi Vivah Muhurat 2024)


देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। इस दिन चतुर्मास की समाप्ति होती है तथा सभी मांगलिक कार्य फिर से प्रारंभ हो जाते हैं। ऐसा मत है कि जिस दिन एकादशी तिथि समाप्त होकर द्वादशी तिथि का आरंभ हो रहा हो उसी दिन प्रबोधिउत्सव के साथ तुलसी विवाह करना चाहिए।

शास्त्र अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी युक्त द्वादशी तिथि के प्रदोष काल में तुलसी विवाह कराना उत्तम माना जाता है। आइए जानें इस साल कब मनाई जाएगी देव उठनी एकादशी और तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त…


देवउठनी
एकादशी तिथि प्रारंभ: – 11 नवंबर को शाम 06 बजकर 46 मिनट से

देवउठनी एकादशी तिथि समापन: – 12 नवंबर को शाम 04 बजकर 04 मिनट पर

तुलसी विवाह तिथि: – 12 नवंबर को शाम 5:29 बजे से लेकर शाम 7:53 बजे तक

इस साल तुलसी विवाह का आयोजन 12 नवंबर मंगलवार को देवउठनी एकादशी के दिन होगा क्योंकि उस दिन तुलसी विवाह के लिए एकादशी द्वादशी युक्त प्रदोष मुहूर्त प्राप्त हो रहा है।

तुलसी विवाह सामग्री सूची:-

  • तुलसी का पौधा,
  • चौकी,भगवान विष्णु की मूर्ति,
  • मूली, आंवला, शकरकंद, सिंघाड़ा, मूली, सीताफल और अन्य फल,
  • मंडप तैयार करने के लिए गन्ना,
  • धूप, दीपक, अगरबत्ती, पकवान और मिठाई
  • माला, फूल, हल्दी, घंटी, मौली, वस्त्र,
  • लाल चुनरी, सुहाग सामाग्री, सिंदूर, चूड़ियां, बिंदी।

कैसे किया जाता हैं तुलसी विवाह (Tulsi Vivah Puja Vidhi)

  • तुलसी विवाह के दिन सुबह ब्रह्म मुहुर्त में उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें।
  • इस दिन तुलसी के गमले को सजाया जाता हैं.
  • चारो तरफ फूलों एवम गन्ने के द्वारा मंडप सजाते हैं.
  • तुलसी स्तंभ पर स्वास्तिक बनाएं। रंगोली से अष्टदल कमल बनायें।
  • तुलसी पूजन के लिए सबसे पहले तुलसी के पौधे को दुल्हन की तरह सजाएं।
  • लाल चुनरी से तुलसी के पौधे को सुसज्जित करें।
  • विष्णु देवता की प्रतिमा स्थापित की जाती हैं.
  • इसके बाद भगवान विष्णु की अराधाना करें और दीपक प्रज्वलित करें।
  • भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल और वस्त्र समर्पित करें।
  • ईख, अनार, केला, सिंघाड़ा, लड्डू, बतासे, मूली आदि ऋतुफल एवं नए अनाज इत्यादि के साथ भगवान विष्णु की पूजा करें।
  • तुलसी एवम विष्णु जी का गठबंधन कर पुरे विधि विधान से पूजन किया जाता हैं.
  • दशाक्षरी मंत्र से तुलसी का आवाह्न करें।
  • श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वृन्दावन्यै स्वाहा मंत्र का जाप करें।
  • घी का दीप और धूप दिखाने के साथ ही सिंदूर, रोली, चंदन और नैवेद्य चढ़ायें।

तुलसी विवाह पूजा विधि

  • पूजा के समय मां तुलसी को सुहाग का सामान और लाल चुनरी जरूर चढ़ाएं।
  • गमले में शालीग्राम को साथ रखें और तिल चढ़ाएं।
  • तुलसी और शालीग्राम को दूध में भीगी हल्दी का तिलक लगाएं।
  • पूजा के बाद 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
  • शालिग्राम जी के साथ उनके फेरे कराएं।
  • विष्णु चालीसा का पाठ करें.
  • पूजा कर ॐ नमो वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण कर विवाह की विधि पूरी करते हैं।
  • परिवार जनों के साथ पूजा के बाद तुलसी माता की आरती करें।
  • एकादशी के दिन तुलसी को जल न चढ़ाएं क्योंकि इस दिन तुलसी माता भी विष्णु जी के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
  • विवाह संपन्न होने पर सुहागिन स्त्रियां गौर से अपना सुहाग लें।
  • भोग सभी में वितरित करें।
  • इस प्रकार इस दिन से चार माह से बंद मांगलिक कार्यो का शुभारम्भ होता हैं।

Tulsi Vivah Puja Vidhi

तुलसी स्तुति का मंत्र

मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।

महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

तुलसी पूजन मंत्र-

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

तुलसी विवाह पौराणिक कथा (Tulsi Vivah Puja Vidhi Pauranik Katha)

शिव पुराण की कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव के क्रोध से तेज का निर्माण हुआ। इस तेज के समुद्र में जाने से एक तेजस्वी दैत्य बालक ने जन्म लिया। जो आगे चलकर दैत्यराज जलंधर कहलाया और इसकी राजधानी जालंधर कहलायी। जालंधर का विवाह कालनेमी की पुत्री वृंदा से हुआ। वृंदा पतिव्रता स्त्री थी। जलंधर ने अपने पराक्रम से स्वर्ग को जीत लिया।

एक दिन वो अपनी शक्ति के मद में चूर हो कर माता पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत जा पहुंचा। इससे क्रुद्ध हो कर भगवान शंकर ने उसका वध करने का प्रयास किया। लेकिन भगवान शिव का ही पुत्र होने के कारण वो शिव के समान ही बलशाली था और उसके साथ वृंदा के पतिव्रत की शक्ति भी थी। जिस कारण भगवान शिव भी उसका वध नहीं कर पा रहे थे।

तब पार्वती जी ने सार वृत्तांत विष्णु जी को सुनाया। जब तक वृंदा का पतिव्रत भंग नहीं होगा तब तक जलंधर को नहीं मारा जा सकता है।भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुंचे, जहां वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थीं। ऋषि को देखकर वृंदा ने महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा।

तब ऋषि रूपी विष्णु जी ने अपनी माया से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति की यह दशा देखकर वृंदा मूर्छित हो गई। होश में आने पर उसने ऋषि से अपने पति को जीवित करने की विनती की।

Tulsi Vivah Puja Vidhi
Tulsi Vivah Puja Vidhi

भगवान विष्णु ने अपनी माया से पुन: जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया और साथ ही स्वयं भी उसके शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का जरा भी आभास न हुआ। जालंधर बने भगवान विष्णु के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी। जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया और ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार कर मारा गया। भगवान विष्णु की लीला का पता चलने पर वृंदा ने, भगवान विष्णु को ह्रदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया।

वृंदा के श्राप के प्रभाव से विष्णु जी शालिग्राम रूप में पत्थर बन गये। सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से सृष्टि में असंतुलन स्थापित हो गया। यह देखकर सभी देवी देवताओं ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर दे। वृंदा ने विष्णु जी को श्राप मुक्त कर स्वयं आत्मदाह कर लिया।

जहां वृंदा भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उग आया। भगवान विष्णु ने कहा कि वृंदा, तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। तब से हर साल कार्तिक महीने के देव-उठावनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।

तुलसी विवाह कथा (Tulsi Vivah Puja Vidhi Katha ):

तुलसी (पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिसका नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था, बचपन से ही वह भगवान विष्णु की भक्त थी. बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी. जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया।

शिव पुराण की कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव के क्रोध से तेज का निर्माण हुआ। इस तेज के समुद्र में जाने से एक तेजस्वी दैत्य बालक ने जन्म लिया। जो आगे चलकर दैत्यराज जलंधर कहलाया. जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.

जलंधर की वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वजंयी बना हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी, लेकिन पति के पापों के कारण दुखी थी. इसलिए उसने अपना मन विष्णु भक्ति में लगा दिया था.

एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा – “स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे, मैं पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुंगी, और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प नही छोडूगी”।

जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये। सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – “वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता”। फिर देवता बोले – “भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है”।

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भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैस ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए, जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया, उनका सिर वृंदा के महल में गिरा।

जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है? उन्होंने पूँछा – “आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया”, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके, वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया कि आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।

सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे, तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी। उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा – आज से इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करुगा।

तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे और वहीं कार्तिक मास में तुलसी और शालिग्राम के विवाह की भी परंपरा चली आ रही है। देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !

तुलसी माता की कथा (Tulsi Vivah Puja Vidhi)

Tulsi Vivah Puja Vidhi

 

बुढ़िया माई की कहानी

कार्तिक महीने में एक बुढिया माई तुलसीजी को सींचती और कहती कि हे तुलसी माता! सत की दाता मैं तेरा बिडला सीचती हूँ, मुझे बहु दे, पीताम्बर की धोती दे, मीठा मीठा गास दे बैकुंठा में वास दे, चटक की चाल दे, पटक की मोत दे चंदन का काठ दे, रानी सा राज दे, दाल भात का भोजन दे ग्यारस की मोत दे, कृष्ण जी का कन्धा दे. तब तुलसी माता यह सुनकर सूखने लगी तो भगवान ने पूछा- की हे तुलसी ! तुम क्यों सुख़ रही हो ?

तुलसी माता ने कहा कि एक बुढिया रोज आती है और यही बात कह जाती है. में सब बात तो पूरा कर दूँगी लेकिन कृष्ण का कन्धा कहा से लाऊंगी, तो भगवान बोले जब वो मरेगी तो में अपने आप कंधा दे आऊगा, तू बुढिया माई से कह देना बाद में बुढिया माई मर गई। सब लोग आ गये। जब माई को ले जाने लगे तो वह किसी से न उठी . तब भगवान एक बारह बरस के बालक का रूप धारण करके आये.

बालक ने कहा में कान में एक बात कहूँगा तो बुढिया माई उठ जाएगी. बालक ने कान में कहा, बुढिया माई मन की निकाल ले, पीताम्बर की धोती ले, मीठा मीठा गास ले, बेकुंठा का वास ले, चटक की चालले, पटक की मौत ले, कृष्ण जी का कन्धा ले सुनकर बुढिया माई हल्की हो गई, भगवान ने कन्धा दिया और बुढिया माई को मुक्ति मिल गई, हे तुलसी माता जेसे बुढिया माई को मुक्ति दी वेसे सबको देना.

तुलसी जी की आरती : (Tulsi Vivah Puja Vidhi Arti)

तुलसी महारनी नमो नमो, हरि की पटरानी नमो नमो ।
धन तुलसी पुरन तप कीनो शालिग्राम बनी पटरानी ।
जाके पत्र मंजर कोमल, श्रीपति कमल चरण लपटानी ।
धूप-दीप-नवेध आरती, पुष्पन की वर्षा बरसानी ।
छप्पन भोग, छत्तीसो व्यंजन, बिन तुलसी हरि एक ना मानी ।
सभी सुखी मैया, तेरो यश गावे, भक्ति दान दीजै महारानी ।
नमो-नमो तुलसी महरानी, नमो-नमो तुलसी महारानी ।

तुलसी चालीसा का पाठ (Tulsi Vivah Puja Vidhi – Tulasi Chalisa)

॥ दोहा ॥

जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी ।
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुन खानी ॥

श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब ।
जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब ॥

॥ चौपाई ॥

धन्य धन्य श्री तलसी माता। महिमा अगम सदा श्रुति गाता॥

हरि के प्राणहु से तुम प्यारी। हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी॥

जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो। तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो॥

हे भगवन्त कन्त मम होहू। दीन जानी जनि छाडाहू छोहु॥

सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी। दीन्हो श्राप कध पर आनी॥

उस अयोग्य वर मांगन हारी। होहू विटप तुम जड़ तनु धारी॥

सुनी तुलसी हीँ श्रप्यो तेहिं ठामा। करहु वास तुहू नीचन धामा॥

दियो वचन हरि तब तत्काला। सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला॥ 

समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा। पुजिहौ आस वचन सत मोरा॥

तब गोकुल मह गोप सुदामा। तासु भई तुलसी तू बामा॥

कृष्ण रास लीला के माही। राधे शक्यो प्रेम लखी नाही॥

दियो श्राप तुलसिह तत्काला। नर लोकही तुम जन्महु बाला॥ 

यो गोप वह दानव राजा। शङ्ख चुड नामक शिर ताजा॥

तुलसी भई तासु की नारी। परम सती गुण रूप अगारी॥

अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ। कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ॥

वृन्दा नाम भयो तुलसी को। असुर जलन्धर नाम पति को॥ 

करि अति द्वन्द अतुल बलधामा। लीन्हा शंकर से संग्राम॥

जब निज सैन्य सहित शिव हारे। मरही न तब हर हरिही पुकारे॥

पतिव्रता वृन्दा थी नारी। कोऊ न सके पतिहि संहारी॥

तब जलन्धर ही भेष बनाई। वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई॥ 

शिव हित लही करि कपट प्रसंगा। कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा॥

भयो जलन्धर कर संहारा। सुनी उर शोक उपारा॥

तिही क्षण दियो कपट हरि टारी। लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी॥

जलन्धर जस हत्यो अभीता। सोई रावन तस हरिही सीता॥ 

अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा ।धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा॥

यही कारण लही श्राप हमारा। होवे तनु पाषाण तुम्हारा॥

सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे। दियो श्राप बिना विचारे॥

लख्यो न निज करतूती पति को।छलन चह्यो जब पारवती को॥ 

जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा।जग मह तुलसी विटप अनूपा॥

धग्व रूप हम शालिग्रामा। नदी गण्डकी बीच ललामा॥

जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं। सब सुख भोगी परम पद पईहै॥

बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा। अतिशय उठत शीश उर पीरा॥ 

जो तुलसी दल हरि शिर धारत। सो सहस्त्र घट अमृत डारत॥

तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी। रोग दोष दुःख भंजनी हारी॥

प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर। तुलसी राधा में नाही अन्तर॥

व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा। बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा॥ 

सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही। लहत मुक्ति जन संशय नाही॥

कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत। तुलसिहि निकट सहसगुण पावत॥

बसत निकट दुर्बासा धामा। जो प्रयास ते पूर्व ललामा॥

पाठ करहि जो नित नर नारी। होही सुख भाषहि त्रिपुरारी॥ 

॥ दोहा ॥

तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी ।
दीपदान करि पुत्र फल पावही बन्ध्यहु नारी ॥

सकल दुःख दरिद्र हरि हार ह्वै परम प्रसन्न ।
आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र ॥

लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम ।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम ॥

तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम ।
मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास ॥

विष्णु चालीसा का पाठ (Tulsi Vivah Puja Vidhi – Vishnu Chalisa)

देवोत्थान एकादशी के दिन पूजन में विष्णु चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से श्री हरि विष्णु आपके सारे दुख दूर करते हैं और सुख-समृद्धि का वर प्रदान करते हैं.

दोहा

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय।

चौपाई

नमो विष्णु भगवान खरारी। कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी। त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत। सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥
तन पर पीतांबर अति सोहत। बैजन्ती माला मन मोहत॥
शंख चक्र कर गदा बिराजे। देखत दैत्य असुर दल भाजे॥
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे। काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥
संतभक्त सज्जन मनरंजन। दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन। दोष मिटाय करत जन सज्जन॥
पाप काट भव सिंधु उतारण। कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥
करत अनेक रूप प्रभु धारण। केवल आप भक्ति के कारण॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा। तब तुम रूप राम का धारा॥
भार उतार असुर दल मारा। रावण आदिक को संहारा॥
आप वराह रूप बनाया। हरण्याक्ष को मार गिराया॥
धर मत्स्य तन सिंधु बनाया। चौदह रतनन को निकलाया॥
अमिलख असुरन द्वंद मचाया। रूप मोहनी आप दिखाया॥
देवन को अमृत पान कराया। असुरन को छवि से बहलाया॥
कूर्म रूप धर सिंधु मझाया। मंद्राचल गिरि तुरत उठाया॥
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया। भस्मासुर को रूप दिखाया॥
वेदन को जब असुर डुबाया। कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया॥
मोहित बनकर खलहि नचाया। उसही कर से भस्म कराया॥
असुर जलंधर अति बलदाई। शंकर से उन कीन्ह लडाई॥
हार पार शिव सकल बनाई। कीन सती से छल खल जाई॥

Tulsi Shaligram Vivah Puja Vidhi
Tulsi Vivah Puja Vidhi

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी। बतलाई सब विपत कहानी॥
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥
देखत तीन दनुज शैतानी। वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी। हना असुर उर शिव शैतानी॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे। हिरणाकुश आदिक खल मारे॥
गणिका और अजामिल तारे। बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥
हरहु सकल संताप हमारे। कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे। दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥
चहत आपका सेवक दर्शन। करहु दया अपनी मधुसूदन॥
जानूं नहीं योग्य जप पूजन। होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण। विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥
करहुं आपका किस विधि पूजन। कुमति विलोक होत दुख भीषण॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण। कौन भांति मैं करहु समर्पण॥
सुर मुनि करत सदा सेवकाई। हर्षित रहत परम गति पाई॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई। निज जन जान लेव अपनाई॥
पाप दोष संताप नशाओ।भव-बंधन से मुक्त कराओ॥
सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ। निज चरनन का दास बनाओ॥
निगम सदा ये विनय सुनावै। पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥

भगवान विष्णु को जगाने का मंत्र

उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव

Conclusion

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FAQs – Tulsi Vivah Puja Vidhi

तुलसी विवाह 2024 कब है?

तुलसी विवाह 12 नवंबर मंगलवार को प्रदोष काल में किया जाएगा.
 

देवउठनी एकादशी 2024 कब है?

इस वर्ष देवउठनी एकादशी 12 नवंबर को मनाई जाएगी.
 

एकादशी के दिन कौन से काम नहीं करने चाहिए?

एकादशी के पावन दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चावल का सेवन करने से मनुष्य का जन्म रेंगने वाले जीव की योनि में होता है।
by Tripti Srivastava
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1 thought on “Tulsi Vivah Puja Vidhi, Samagri | देवउठनी एकादशी 2024, तुलसी विवाह मुहूर्त, पूजा विधि, सामग्री, मंत्र, कथा और आरती”

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