याद आती है मुझे……मेरी कलम से
याद आती है मुझे, गुजरे जमाने की वो धुंधली तस्वीर…
वो रातों को जगना,
अरमानों को पंख लगाना,
निंदिया को भगाकर,
किताबों को जगह देना।
गूँजती है कानों में अब भी मेरे नाम की वो पुकार…
वो तालियों का गूंजना,
सफलता के कदम चूमना,
पुरस्कारों के साथ तस्वीरें खिंचवाना,
उत्साह से बड़ों का आशीर्वाद लेना।
Hindi Poem by Tripti Srivastava
वक़्त ने कुछ इस तरह मुझसे सौदा किया….
अब नही मेरा वो नाम था,
ना ही अरमान था,
अब ना ही वो ‘तृप्ति’ थी,
ना ही वो चैन था।
आईने से पूछा करती यही मैं बार-बार…
मेरा वो नाम कहाँ गुम हो गया,
मेरा वो सम्मान मुझे क्यों छोड़ गया,
अरमानों ने अपना क्यों पंख कुतर दिया,
नींदों की जगह क्यों करवटों ने ले लिया।